Sunday 24 July 2011

मै इक निर्जल सागर

मैं सागर हूँ , इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है !
जो बूँद-बूँद में भर जाता, पर बूँद-बूँद को प्यासा है !!

तुम ज्वार समझते खुशियों का , मेरे अंतस की पीड़ा है !
हर भाटा,  कदम हटा पीछे ; हर लहर दर्द की वीणा है !!

रिश्तों की लाखों ही नदियाँ, मुझमे आकर हर रोज़ मिलीं ! 
दुर्भाग्य मगर देखो मेरा, होता खारापन दूर नहीं !!

प्रायः विचार करता रहता, ये खारापन आया कैसे ?
मैं सुधा बाँटने निकला था, फिर मैंने विष पाया कैसे ?

ये गूढ़ समझ में अब आया, ये  फल है निष्फल भावों का !
इसको तो खारा होना है , ये जल है मेरी  निगाहों का !!

पर प्राणप्रिये था ज्ञात तुम्हें, तुमसे अस्तित्व हमारा है !
मैं तो था इक निर्जल दरिया, ये बहता प्रेम तुम्हारा है !!
तुम थीं  बदली इन सांसो की, फिर जीवन को तरसाया क्यों ?
जन्मों से प्यासे " सागर " को, यूँ बूंद - बूंद बरसाया क्यों ?


पहले तो था  मैं अंतहीन, अब अर्थहीन सा लगता हूँ  !
प्रतिदिन सूरज मुझमें डूबे, आभाविहीन सा लगता हूँ !!


मैं सागर हूँ , इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है !
जो बूँद-बूँद में भर जाता, पर बूँद-बूँद को प्यासा है !!


24 comments:

  1. सागर को इतने सारे दृष्टिकोणणे से देखने का नजरिया अच्छा है।

    सागर यह भी तो कहता है न कि लोग आंसुओं की दरिया बहा दिए मैं पीता गया इसी लिए गागर हूं मैं

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  2. रिश्तों की लाखों ही नदियाँ, मुझमे आकर हर रोज़ मिलीं !
    दुर्भाग्य मगर देखो मेरा, होता खारापन दूर नहीं !!

    bahut sundar abhivyakti hai...
    aapki bhasha aur bhav prabhavit karti hai..
    likhte rahein..

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  3. गूढ़ समझ में अब आया, ये फल है निष्फल भावों का !
    इसको तो खारा होना है , ये जल है मेरी निगाहों का !!


    निशब्द करने वाली पंक्तियाँ हैं सागर ...... बहुत सुंदर

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  4. मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद.
    बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  5. मैं सागर हूँ , इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है !
    जो बूँद-बूँद में भर जाता, पर बूँद-बूँद को प्यासा है !!

    बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..

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  6. बहुत सुन्दर रचना ..हर पंक्ति गहन भाव को समेटे हुए

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  7. सागरजी आपने बहुत ही अच्छा लिखा है ...आगे भी इस तरह की बेहतरीन रचना की उम्मीद रहेगी आपसे

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  8. शानदार प्रस्तुति, बधाई ||

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  9. ये गूढ़ समझ में अब आया, ये फल है निष्फल भावों का !
    इसको तो खारा होना है , ये जल है मेरी निगाहों का !!
    वाह सागर जी, बहुत अच्छा लगा आपको पढकर....आनंद आ गया...
    सादर...

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  10. रिश्तों की लाखों ही नदियाँ, मुझमे आकर हर रोज़ मिलीं !
    दुर्भाग्य मगर देखो मेरा, होता खारापन दूर नहीं !!
    ....मर्मस्पर्शी प्रस्तुति!!

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  11. सागर जी
    आज पहली बार पढा है आपको और सच मे बहुत अच्छा लगा…………बेहद उम्दा अभिव्यक्ति।

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  12. वाह क्या बात है सागर जी....

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  13. बहुत बढ़िया।

    सादर

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  14. बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति!!!

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  15. bahut sunder rachna ...
    shubhkamnayen.

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  16. Saagar si gahraai wale bhaav liye hai yeh rachanaa.
    Badhai

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  17. This comment has been removed by the author.

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