Saturday 26 March 2011

मेरा पुराना घर


मैने सोचा था , कि बैसाखी बनेगा तू मेरी 
मेरे बच्चे तू आया है ,गिराने मुझको
एक-एक फूस को आंधियों में भी संभाले रखा
तू सालों बाद आया भी तो जलाने मुझको


मै खड़ा देख ही रहा था अपने पुराने मकाँ  की तरफ़
बहुत धीमी सी आवाज़ नीव की ईट से आयी
तेरे दादा ने यहाँ रखा था बेटा मुझको
पीढियों तक की रक्षा की कसम मैने चुपचाप निभाई


पता है पिछ्ले डेढ़ साल  से रिस-रिस कर पानी आता था मुझ तक
और मै इन्तज़ार में थी कि तू आयेगा तो संवारेगा मुझे 
दबा के रखे थी  आधी सदी से भी ज़्यादा इज़्ज़त 
पता क्या था तू नग्न करायेगा मुझे 


तभी अचानक दीवारें भी ललकार उठीं
देखती हूँ तू कैसे गिरा पाता है मुझे ?
नाच उठती थी तेरी किलकारियां सुन कर मै भी
आज तू इतना बड़ा हो गया कि डराता है मुझे ?


छत की ओर देखा तो वो भी घूर कर बोली -
मै कच्ची थी  , एक तूफ़ां में तेरे दादा पे गिर गयी टूट कर
फिर भी मेरी हर इक ईट की वफ़ादारी देखो
अपने मालिक की जान बचाई थी ख़ुद मिट कर


कितने सालों से जब बिजली कड़कती, तो  सहम उठती
के बरसना मत, मेरे बच्चे का सामान ना भीग जाये कहीं
अच्छा हो के खुद ही टूट कर गिर जाऊँ
मुझे गिराने में तेरी तक़लीफ़ ही बच जाय कहीं


दरवाजे खिड़कियां हर तरफ़ से बस प्रश्न ही प्रश्न
मै बदहवास सा घर से बाहर की ओर भाग उठा
चीखती , चिल्लाती ,कानों को भेदती आवाज़ें
ऐसा लगता था कि रूहों का झुंड जाग उठा


बाहर निकला तो दरवाज़े की चौखट बोली-
भागता क्यों है , रुक और बात सुन मेरी
ये सच है कि हम बूढ़े तेरे किसी काम के नही
पर सिर्फ़ सामान तो नही , हम बुज़ुर्ग़ियत की विरासत हैं तेरी


तेरे दादा-दादी  का वो पहला कदम
तेरे बाप की हर किलकारी मुझमें
उनकी जवानी का हूँ गवाह मैं ही
उनके संघर्षों की हर कहानी मुझमें 


वो जनेऊ, वो कुआँ पूजन को निकलना उनका
तेरी दादी के रतजगों की हर थाप मुझमें
तेरी माँ को विदा कराके घर लाना
तेरे नन्हे कदमो की हर नाप मुझमें


तेरे दादा के इन्तक़ाल पर मैं भी रोया
तेरे पिता के गुज़रने से तो मै टूट गया
अब गिरा ही दे, यही बेहतर है मेरे लिये  
शहर के नाम पर, अब तेरा साथ भी तो छूट ही गया


शहर के नाम पर, अब तेरा साथ भी तो छूट ही गया........ 










Wednesday 16 March 2011

मेरे जन्मदाता के चरणों में समर्पित मेरे श्रृद्धा-सुमन

भले भूल जाऊं ये सारा जहाँ मैं ,
मगर उनके चरणों को कैसे भुलाऊं ?
हर-इक सांस में मेरी जिनका लहू है ,
उन्हें भूल कर खुद को कैसे सुलाऊं ?

वही मेरा तन हैं, वही मेरा मन हैं ,
हम उनकी ही बगिया के खिलते सुमन हैं - २
भले भूल जाऊं महकना कभी मैं ,
मगर उनकी ख़ुशबू को कैसे भुलाऊं ??

उन्ही के दिए ज्ञान के बोल हैं ये ,
उन्ही की ज़बां के ये , अनमोल हैं ये -२
भले भूल जाऊं मैं सारी किताबें ,
मगर उन विचारों को कैसे भुलाऊं ??

है अफ़सोस इसका नहीं पास हैं वो ,
मगर मेरी रग़-रग़ का विश्वास हैं वो ,
भले भूल जाऊं मैं अहसास ख़ुद का ,
मगर उनका विश्वास कैसे भुलाऊं ????????

कब तलक


कब तलक तन्हाईयों में बैठकर रोता रहेगा ?
कब तलक अश्कों से उनके अक्स को धोता रहेगा ?
कब तलक ये ज़िन्दगी यूँ ही गुज़ारेगा अकेला ?
देखने में स्वप्न उसका , कब तलक सोता रहेगा ?

कब तलक नफरत करेगा रेत से  " सागर " की ख़ातिर ? 
कब तलक सूना  रहेगा यूँ तुम्हारे दिल का मंदिर ?
कब तलक खोया रहेगा शून्य की गहराईयों  में ?
ढूंढता उसको रहेगा कब तलक तू ऐ मुसाफिर ?

कब तलक तोड़ेगा तू इन आईनों को ?
एक टुकड़ा भी तुझे प्रतिरूप देगा , 
ज़िन्दगी खिल जाएगी इक फूल जैसी ,
ग़र अंधेरों से निकलकर धूप देगा !!

क्यूँ समझता है नहीं तू बात मेरी ?
जब तलक इक सांस है जीना पड़ेगा , 
प्यार ही मिलता नहीं है हर क़दम पर ,
दर्द-ए-दिल का जाम भी पीना पड़ेगा  !!

है सहारा ग़र नहीं तेरा जहाँ में ,
बन सहारा पंगु को तू चाल दे दे , 
देखता रह जाये ये सारा ज़माना ,
इस तरह दुःख दर्द को सुर-ताल दे दे !! 

हार कर बैठा रहेगा कब तलक यूँ ?
मोड़ दे हर राह को अपने क़दम से ,
हर शब्द तेरा शायरी बन जायेगा फिर , 
देख तो लिख करके तू  दिल की कलम से,,,....!!
देख तो लिख करके तू..................

Saturday 5 March 2011

मौत की नसीहत

एक दिन स्वप्न में मौत से   मै मिला, जिंदगी की वसीयत पता चल गयी  ! 
जिंदगी-मौत का भेद मन से मिटा, मौत की जब नसीहत पता चल गयी !! 

मौत कहने लगी- हे मनुज आज सुन, सोचता है कि तू जिंदगी है बड़ी  !
हूँ नहीं मैं अकेली दुखद कष्ट-जड़, जिंदगी भी मेरे संग में है जुड़ी !!

जिंदगी के लिए तू भटकता रहा, जिंदगी के लिए तूने साधन चुने !
हैं वही आज कारण तेरी मौत के, ढूढने में जिन्हें तेरे तन-मन घुने !! 

है नहीं  जल प्रदूषण  रहित झील अब, सांस के हेतु है प्राणवायु नहीं !
भूमि भी है नहीं अन्न के हेतु अब , आदमी के लिए आदमी है नहीं  !!

बुलबुला जिंदगी का तेरी ऐ मनुज , आज परमाणुओं पर है बैठा हुआ  !
तेरे द्वारा ही निर्मित ये खंजर तेरा , आज तेरी ही आँतों में पैठा हुआ  !!

जान से भी अधिक चाहता था जिसे , मारने को उसे आज तैयार है !
भाई के भी लिए मन में नफरत भरी, आज पैसे से ही बस तुझे प्यार है !!

आदमी-आदमी से घृणा कर रहा , क्या यही है  तुझे जिंदगी ने दिया ?
नहीं मारती हूँ तुझे ऐ मनुज, विष का प्याला है  तूने स्वयं पी लिया !!

हे मनुज तू अगर ऐसे चलता रहा, मेड़ जीवन कि तेरे खिसक जाएगी !
फिर नहीं दोष दे पायेगा तू मुझे, जिंदगी खुद-ब-खुद मौत बन जाएगी !!

जिंदगी खुद-ब-खुद मौत बन जाएगी........................................................