तुम
कभी चट्टान का सीना
कभी दो बाँहों की गुड़िया
कभी सवालों की बोझिल सांझ
कभी इतराती गुनगुनी सुबह …. !
तुम
कभी अंतहीन ख़ामोशी
कभी चीखती लहरें
कभी अहिल्या सी निश्चल
कभी नदी सा बदलाव.....!
तुम
कभी सूनी चौखट
कभी चुभती शेहनाई
कभी ढहती दीवारें
कभी नींव की पहली ईंट....!
तुम
कभी शब्द
कभी अर्थ
कभी मैं
कभी तुम
कभी शून्य
कभी रिक्त
तुम …… !!
कभी चट्टान का सीना
कभी दो बाँहों की गुड़िया
कभी सवालों की बोझिल सांझ
कभी इतराती गुनगुनी सुबह …. !
तुम
कभी अंतहीन ख़ामोशी
कभी चीखती लहरें
कभी अहिल्या सी निश्चल
कभी नदी सा बदलाव.....!
तुम
कभी सूनी चौखट
कभी चुभती शेहनाई
कभी ढहती दीवारें
कभी नींव की पहली ईंट....!
तुम
कभी शब्द
कभी अर्थ
कभी मैं
कभी तुम
कभी शून्य
कभी रिक्त
तुम …… !!
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteखुबसूरत अभिव्यक्ति..शुभकामनाएं
ReplyDeleteबढ़िया है मित्रवर-
ReplyDeleteआभार-
'तुम' के कितने आयाम रच गया कवि का कोमल हृदय!
ReplyDeleteLovely!
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteअच्छी लगी रचना...
ReplyDeleteबढ़िया रचना....
ReplyDelete♥ प्रिय बंधुवर आशीष अवस्थी जी 'सागर' ♥
ReplyDeleteआपके जन्मदिवस के मंगलमय अवसर पर
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार
✫✫✫...¸.•°*”˜˜”*°•.♥
✫✫..¸.•°*”˜˜”*°•.♥
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Bahut khoob
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