मैं इंतज़ार दो आँखों का, मैं अंतर्मन की गहराई !
मैं विरह-वेदना की पीड़ा, इक अनजाने की परछाई !!
मैं प्रश्न एक उत्तरविहीन, मैं भाव एक अनुभाव रहित !
स्वच्छंद कभी कानन खग सा, देहावसान सा निर्धारित !!
मैं दीपशिखा की अंतिम लौ, मैं अंधकार की इक लकीर !
मैं स्वप्न लोक का अधिनायक, मैं प्रेम जगत का इक फ़कीर !!
मैं बालकपन की चंचलता, मैं नीरवता की अंगड़ाई !
मैं त्रुटियों का पर्याय एक, पर दृढ़ता का मैं अगुवाई !!
उस परमपिता के विषद जगत का, इक नन्हा सा गागर मैं !
कोटियों नदी-ऊर्मियों बीच हूँ, इक तनहा सा "सागर" मैं !!
कोटियों नदी-ऊर्मियों बीच हूँ...................
bhut hi khubsurati se aap ne bhaavo ko sabdo me piroya hai... aap sager ho ek gahra sa,nhi dekhi kisi ne gahraayi... !!
ReplyDelete... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteमैं त्रुटियों का पर्याय एक, पर दृढ़ता का मैं अगुवाई !!
ReplyDeleteवाह!
भाव विह्वलता से पूर्ण
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