मैने सोचा था , कि बैसाखी बनेगा तू मेरी
मेरे बच्चे तू आया है ,गिराने मुझको
एक-एक फूस को आंधियों में भी संभाले रखा
तू सालों बाद आया भी तो जलाने मुझको
मै खड़ा देख ही रहा था अपने पुराने मकाँ की तरफ़
बहुत धीमी सी आवाज़ नीव की ईट से आयी
तेरे दादा ने यहाँ रखा था बेटा मुझको
पीढियों तक की रक्षा की कसम मैने चुपचाप निभाई
पता है पिछ्ले डेढ़ साल से रिस-रिस कर पानी आता था मुझ तक
और मै इन्तज़ार में थी कि तू आयेगा तो संवारेगा मुझे
दबा के रखे थी आधी सदी से भी ज़्यादा इज़्ज़त
पता क्या था तू नग्न करायेगा मुझे
तभी अचानक दीवारें भी ललकार उठीं
देखती हूँ तू कैसे गिरा पाता है मुझे ?
नाच उठती थी तेरी किलकारियां सुन कर मै भी
आज तू इतना बड़ा हो गया कि डराता है मुझे ?
छत की ओर देखा तो वो भी घूर कर बोली -
मै कच्ची थी , एक तूफ़ां में तेरे दादा पे गिर गयी टूट कर
फिर भी मेरी हर इक ईट की वफ़ादारी देखो
अपने मालिक की जान बचाई थी ख़ुद मिट कर
कितने सालों से जब बिजली कड़कती, तो सहम उठती
के बरसना मत, मेरे बच्चे का सामान ना भीग जाये कहीं
अच्छा हो के खुद ही टूट कर गिर जाऊँ
मुझे गिराने में तेरी तक़लीफ़ ही बच जाय कहीं
दरवाजे खिड़कियां हर तरफ़ से बस प्रश्न ही प्रश्न
मै बदहवास सा घर से बाहर की ओर भाग उठा
चीखती , चिल्लाती ,कानों को भेदती आवाज़ें
ऐसा लगता था कि रूहों का झुंड जाग उठा
बाहर निकला तो दरवाज़े की चौखट बोली-
भागता क्यों है , रुक और बात सुन मेरी
ये सच है कि हम बूढ़े तेरे किसी काम के नही
पर सिर्फ़ सामान तो नही , हम बुज़ुर्ग़ियत की विरासत हैं तेरी
तेरे दादा-दादी का वो पहला कदम
तेरे बाप की हर किलकारी मुझमें
उनकी जवानी का हूँ गवाह मैं ही
उनके संघर्षों की हर कहानी मुझमें
वो जनेऊ, वो कुआँ पूजन को निकलना उनका
तेरी दादी के रतजगों की हर थाप मुझमें
तेरी माँ को विदा कराके घर लाना
तेरे नन्हे कदमो की हर नाप मुझमें
तेरे दादा के इन्तक़ाल पर मैं भी रोया
तेरे पिता के गुज़रने से तो मै टूट गया
अब गिरा ही दे, यही बेहतर है मेरे लिये
शहर के नाम पर, अब तेरा साथ भी तो छूट ही गया
शहर के नाम पर, अब तेरा साथ भी तो छूट ही गया........
नोस्टाल्जिया जैसा कुछ महसूस हुआ इस कविता को पढ़कर . अच्छा लिखते है आप , मिटटी की खुशबू और उसका रंग हर पंक्ति से छलक रहा है .
ReplyDeleteमहल से जब सवालो के सही उत्तर नही मिलते मुझे,
ReplyDeleteफिर गाँव का भीगा हुआ घर याद आया...!!
संवेदनशील रचना, मिट्टी से जुड़े होने का अहसास कराती अच्छी लगी
ReplyDeleteएक टीस सी उठी.
ReplyDelete-------- यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
ReplyDeleteआईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
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क्या यही सिखाता है इस्लाम...? क्या यही है इस्लाम धर्म
गहराई से व्यक्त की गयी हैं मन की भावनाएं |अच्छी पोस्ट |बधाई
ReplyDeleteआशा
गहन भाव लिए अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteमै कच्ची थी , एक तूफ़ां में तेरे दादा पे गिर गयी टूट कर
ReplyDeleteफिर भी मेरी हर इक ईट की वफ़ादारी देखो
अपने मालिक की जान बचाई थी ख़ुद मिट कर
बेहद खूबसूरत...मन को छूने वाले भाव और हकीकत बयां करती रचना....क्या कहूं....
saral ....seedhee....dil ko choo gayee.
ReplyDeletemain aap sbhi ka etne protsaahan ar ashirvad k liye tahe-dil se shukrguzar hun..vishestya Yashwant Mathur sir ka apne mujhe "nayi purani hulchal" k manch pe sthaan diya...ap sbhi ko SAADAR & SABHAR PRANAAM !!
ReplyDeleteबहुत सरल शब्दों गहन बात कह दी..
ReplyDeleteहकीकत बयां करती रचना..
ReplyDeletesuperbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbb aur kuch nahi bolsakta aakh bharaaye padkar
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