Saturday, 5 March 2011

मौत की नसीहत

एक दिन स्वप्न में मौत से   मै मिला, जिंदगी की वसीयत पता चल गयी  ! 
जिंदगी-मौत का भेद मन से मिटा, मौत की जब नसीहत पता चल गयी !! 

मौत कहने लगी- हे मनुज आज सुन, सोचता है कि तू जिंदगी है बड़ी  !
हूँ नहीं मैं अकेली दुखद कष्ट-जड़, जिंदगी भी मेरे संग में है जुड़ी !!

जिंदगी के लिए तू भटकता रहा, जिंदगी के लिए तूने साधन चुने !
हैं वही आज कारण तेरी मौत के, ढूढने में जिन्हें तेरे तन-मन घुने !! 

है नहीं  जल प्रदूषण  रहित झील अब, सांस के हेतु है प्राणवायु नहीं !
भूमि भी है नहीं अन्न के हेतु अब , आदमी के लिए आदमी है नहीं  !!

बुलबुला जिंदगी का तेरी ऐ मनुज , आज परमाणुओं पर है बैठा हुआ  !
तेरे द्वारा ही निर्मित ये खंजर तेरा , आज तेरी ही आँतों में पैठा हुआ  !!

जान से भी अधिक चाहता था जिसे , मारने को उसे आज तैयार है !
भाई के भी लिए मन में नफरत भरी, आज पैसे से ही बस तुझे प्यार है !!

आदमी-आदमी से घृणा कर रहा , क्या यही है  तुझे जिंदगी ने दिया ?
नहीं मारती हूँ तुझे ऐ मनुज, विष का प्याला है  तूने स्वयं पी लिया !!

हे मनुज तू अगर ऐसे चलता रहा, मेड़ जीवन कि तेरे खिसक जाएगी !
फिर नहीं दोष दे पायेगा तू मुझे, जिंदगी खुद-ब-खुद मौत बन जाएगी !!

जिंदगी खुद-ब-खुद मौत बन जाएगी........................................................
   

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