Wednesday, 16 March 2011

कब तलक


कब तलक तन्हाईयों में बैठकर रोता रहेगा ?
कब तलक अश्कों से उनके अक्स को धोता रहेगा ?
कब तलक ये ज़िन्दगी यूँ ही गुज़ारेगा अकेला ?
देखने में स्वप्न उसका , कब तलक सोता रहेगा ?

कब तलक नफरत करेगा रेत से  " सागर " की ख़ातिर ? 
कब तलक सूना  रहेगा यूँ तुम्हारे दिल का मंदिर ?
कब तलक खोया रहेगा शून्य की गहराईयों  में ?
ढूंढता उसको रहेगा कब तलक तू ऐ मुसाफिर ?

कब तलक तोड़ेगा तू इन आईनों को ?
एक टुकड़ा भी तुझे प्रतिरूप देगा , 
ज़िन्दगी खिल जाएगी इक फूल जैसी ,
ग़र अंधेरों से निकलकर धूप देगा !!

क्यूँ समझता है नहीं तू बात मेरी ?
जब तलक इक सांस है जीना पड़ेगा , 
प्यार ही मिलता नहीं है हर क़दम पर ,
दर्द-ए-दिल का जाम भी पीना पड़ेगा  !!

है सहारा ग़र नहीं तेरा जहाँ में ,
बन सहारा पंगु को तू चाल दे दे , 
देखता रह जाये ये सारा ज़माना ,
इस तरह दुःख दर्द को सुर-ताल दे दे !! 

हार कर बैठा रहेगा कब तलक यूँ ?
मोड़ दे हर राह को अपने क़दम से ,
हर शब्द तेरा शायरी बन जायेगा फिर , 
देख तो लिख करके तू  दिल की कलम से,,,....!!
देख तो लिख करके तू..................

3 comments:

  1. " भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" की तरफ से आप को तथा आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामना. यहाँ भी आयें. www.upkhabar.in

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  2. i am very happy for you that continuously start writing.

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  3. बहुत बढ़िया लिखते हैं आप.

    सादर

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