Wednesday, 16 March 2011

मेरे जन्मदाता के चरणों में समर्पित मेरे श्रृद्धा-सुमन

भले भूल जाऊं ये सारा जहाँ मैं ,
मगर उनके चरणों को कैसे भुलाऊं ?
हर-इक सांस में मेरी जिनका लहू है ,
उन्हें भूल कर खुद को कैसे सुलाऊं ?

वही मेरा तन हैं, वही मेरा मन हैं ,
हम उनकी ही बगिया के खिलते सुमन हैं - २
भले भूल जाऊं महकना कभी मैं ,
मगर उनकी ख़ुशबू को कैसे भुलाऊं ??

उन्ही के दिए ज्ञान के बोल हैं ये ,
उन्ही की ज़बां के ये , अनमोल हैं ये -२
भले भूल जाऊं मैं सारी किताबें ,
मगर उन विचारों को कैसे भुलाऊं ??

है अफ़सोस इसका नहीं पास हैं वो ,
मगर मेरी रग़-रग़ का विश्वास हैं वो ,
भले भूल जाऊं मैं अहसास ख़ुद का ,
मगर उनका विश्वास कैसे भुलाऊं ????????

4 comments:

  1. है अफ़सोस इसका नहीं पास हैं वो ,
    मगर मेरी रग़-रग़ का विश्वास हैं वो ,
    भले भूल जाऊं मैं अहसास ख़ुद का ,
    मगर उनका विश्वास कैसे भुलाऊं ????????
    bhut hi touching words hai... bhut hi sunder rachna hai...

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  2. प्रभावशाली प्रस्तुति - बहुत बहुत सुंदर

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  3. tmhaaraa ye wishwaash sadaa banaa rahe .
    wo chahe jahan bhi honge lekin unakaa "aashish" sada umhaare sath hi rahegaa .
    raah mushkil ho bhale hee
    khanaa naa apanaa wishwas
    maanaa raat hai labmii bahut
    agar hogi ek din khushiyon k barasaat

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  4. ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

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