Monday, 18 July 2011

तुम्हारा हो......!!!

तुम जियो उस प्यार मे जो
 मैने तुम्हे दिया है,
उस तन्हाई मेँ नही
 जिसे मैने खुद मे छिपा लिया है....!

तुम खुश रहो उस खुशी मेँ
 जो मैने तुम्हारे लिये चुनी है,
उस पीर मेँ नही
 जो मैने खुद मे समेट ली है....!

तुम बढो उस मंजिल की तरफ
 जिनकी राहे मैने तुम्हारे लिये बनाई है,
चुन लिया सब काँटो को फूलो से राहे सजायी है....!

तुम छुओ उस आकाश को
 जो मैने तुम्हारे लिए तारो से  सजाया है,
उस अँधेरे को नही जिसे मैने खुद मेँ छिपाया है....!

तुम्हे मंजिल तक पहुँचाने का
 एकमात्र उद्देश मेरा हो,
वहाँ का आकाश,
वहाँ की खुशी,
वहाँ का सवेरा सिर्फ तुम्हारा हो..!!

10 comments:

  1. Bahut hi achi rachna likhi hai apne..
    Mere blog par aane ke liye dhanywaad....
    Aaj hi se apko follow kar raha hun.....
    Jai hind jai bhatat.Bahut hi achi rachna likhi hai apne..
    Mere blog par aane ke liye dhanywaad....
    Aaj hi se apko follow kar raha hun.....
    Jai hind jai bhatat.

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  2. तुम्हे मंजिल तक पहुँचाने का
    एकमात्र उद्देश मेरा हो,
    वहाँ का आकाश,
    वहाँ की खुशी,
    वहाँ का सवेरा सिर्फ तुम्हारा हो..!
    बहुत सार्थक भावाभिव्यक्ति

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  3. सागर जी आपके ब्लॉग का जिक्र आज ये ब्लॉग अच्छा लगा पर किया गया है कृपया थोडा समय निकाल वहां भी आयें ब्लॉग का उरल है-
    http://yeblogachchhalaga.blogspot.com

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  4. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  5. विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    कल 07/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. तुम्हे मंजिल तक पहुँचाने का
    एकमात्र उद्देश मेरा हो,
    वहाँ का आकाश,
    वहाँ की खुशी,
    वहाँ का सवेरा सिर्फ तुम्हारा हो..!!

    वाह ...बहुत ही बढि़या ..।

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  7. वाह! बड़ी अच्छी प्रस्तुति...
    सादर...

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