कविताओं में ढूँढ रहा हूँ ,मै अपनी कविता को ।
नयनों के जल से पवित्र हो ,उस निर्मल सरिता को ॥
खुशियों के कुछ क्षण क्रय कर लूँ ,उस नश्वर मुद्रा को ।
जीवन के गम भी सो जाये ,ऐसी चिर निद्रा को ॥
मन के अंधकार "सागर" में ,जीवन की आशा को ।
अन्तिम क्षण में ढूँढ रहा हूँ ,सुख की अभिलाषा को ॥
जो सचमुच में सच हो जाये,कुछ ऐसे सपनों को ।
कभी ना रूठे जीवन में जो ,कुछ ऐसे अपनों को ॥
जहाँ मुझे कोई ना देखे ,ऐसे निर्जन पथ को ।
जिस पर बैठ मृत्यु रण में ,मै जीत सकूँ , उस रथ को ॥
अपने कठिन परिश्रम के ,बदले मे पाये फल को ।
जीवन जैसी कठिन पहेली ,के सीधे से हल को ॥
तन्हाई के कारण खोई ,मैं अपनी सुध बुद को ।
सच तो ये है मै अपने में ,ढूँढ रहा हूँ खुद को ॥
सच तो ये है............
सुन्दर भावप्रवण कविता ऐसा नहीं लगा की ये आपकी पहली कविता है ,. स्वागत है आपका ब्लॉग की इस दुनिया में .
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......स्वागत है ब्लॉग की इस दुनिया में .
ReplyDeletesabse pahle aapko dhnyawad ..jo aapne mujhe protsahit kiya aur mere blog pe tasrif laye...aap se milakat hoti rahegiअपने कठिन परिश्रम के ,बदले मे पाये फल को ।
ReplyDeleteजीवन जैसी कठिन पहेली ,के सीधे से हल को ॥ sach mein kathin parishram ke badle milne wale fal ki hi tamanna hab sabhi ko rahta hai ..milkar ham ek duje ko hausala bandhate rahenge..jindagi ki kasti ko aage aur aage badhate rahenge..phir eun hi hisi roj mulakat hogi..phir baithege phir baat hogi..shub ratri
भई अच्छा लिखा है.
ReplyDeleteसुंदर लिखा है भाई आपको बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर "सागर" आशीष अवस्थी जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत ख़ूब ! … यह आपकी प्रथम रचना है , बहुत आशाएं जगाने वाली है आपकी लेखनी … मंगलकामनाएं हैं !
तन्हाई के कारण खोई ,मैं अपनी सुध बुध को
सच तो ये है मै अपने में ,ढूंढ रहा हूं ख़ुद को
स्वयं की तलाश और स्वयं की प्राप्ति बहुत महत्वपूर्ण हुआ करती है …
आप काव्यलेखन की ऊंचाइयों का स्पर्श करें …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बंधु,
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखते हैं।
इसका तो यही प्रमाण है कि पिछले पन्दर से मिनट से आपको और आपकी रचनाओं को पढ़े जा रहा हूं, आपकी शैली, रचना का प्रवाह और अर्थवत्ता सब बांधे रखता है।
शुभकामनाएं।
आपका ब्लॉग अच्छा लगा और आपकी सम्भावनाओं भरी लेखनी भी , आशीष , स्नेह और बधाई
ReplyDeleteकविताओं में ढूँढ रहा हूँ ,मै अपनी कविता को ।
ReplyDeleteनयनों के जल से पवित्र हो ,उस निर्मल सरिता को ॥
खुशियों के कुछ क्षण क्रय कर लूँ ,उस नश्वर मुद्रा को ।
जीवन के गम भी सो जाये ,ऐसी चिर निद्रा को ॥
bahut badiya rachna...
Haardik shubhkamnayen!
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार. बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
apki pahli hi kriti se aapse bahut si ummeede lag gayi hain ki kuchh bahut acchha padhne ko milega. aapki lekhni me vo sabhi gun nazar aate hai. shubhkaamnay. likhte rahiye.
ReplyDeleteसच तो ये है मै अपने में ,ढूँढ रहा हूँ खुद को
ReplyDeletebahut achchi lagi......
aapke blog ka kafi samay se prashanshak hoon
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