मैं सागर हूँ , इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है !
जो बूँद-बूँद में भर जाता, पर बूँद-बूँद को प्यासा है !!
तुम ज्वार समझते खुशियों का , मेरे अंतस की पीड़ा है !
हर भाटा, कदम हटा पीछे ; हर लहर दर्द की वीणा है !!
रिश्तों की लाखों ही नदियाँ, मुझमे आकर हर रोज़ मिलीं !
दुर्भाग्य मगर देखो मेरा, होता खारापन दूर नहीं !!
प्रायः विचार करता रहता, ये खारापन आया कैसे ?
मैं सुधा बाँटने निकला था, फिर मैंने विष पाया कैसे ?
ये गूढ़ समझ में अब आया, ये फल है निष्फल भावों का !
इसको तो खारा होना है , ये जल है मेरी निगाहों का !!
पर प्राणप्रिये था ज्ञात तुम्हें, तुमसे अस्तित्व हमारा है !
मैं तो था इक निर्जल दरिया, ये बहता प्रेम तुम्हारा है !!
तुम थीं बदली इन सांसो की, फिर जीवन को तरसाया क्यों ?
जन्मों से प्यासे " सागर " को, यूँ बूंद - बूंद बरसाया क्यों ?
पहले तो था मैं अंतहीन, अब अर्थहीन सा लगता हूँ !
bhut khub...... sagar ji.......
ReplyDeletebahut sundar poem hai
ReplyDeleteshandaar check the lining
ReplyDeleteसागर को इतने सारे दृष्टिकोणणे से देखने का नजरिया अच्छा है।
ReplyDeleteसागर यह भी तो कहता है न कि लोग आंसुओं की दरिया बहा दिए मैं पीता गया इसी लिए गागर हूं मैं
रिश्तों की लाखों ही नदियाँ, मुझमे आकर हर रोज़ मिलीं !
ReplyDeleteदुर्भाग्य मगर देखो मेरा, होता खारापन दूर नहीं !!
bahut sundar abhivyakti hai...
aapki bhasha aur bhav prabhavit karti hai..
likhte rahein..
गूढ़ समझ में अब आया, ये फल है निष्फल भावों का !
ReplyDeleteइसको तो खारा होना है , ये जल है मेरी निगाहों का !!
निशब्द करने वाली पंक्तियाँ हैं सागर ...... बहुत सुंदर
मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
मैं सागर हूँ , इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है !
ReplyDeleteजो बूँद-बूँद में भर जाता, पर बूँद-बूँद को प्यासा है !!
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
bahut hi achcha likhe hain.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..हर पंक्ति गहन भाव को समेटे हुए
ReplyDeleteसागरजी आपने बहुत ही अच्छा लिखा है ...आगे भी इस तरह की बेहतरीन रचना की उम्मीद रहेगी आपसे
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति, बधाई ||
ReplyDeleteये गूढ़ समझ में अब आया, ये फल है निष्फल भावों का !
ReplyDeleteइसको तो खारा होना है , ये जल है मेरी निगाहों का !!
वाह सागर जी, बहुत अच्छा लगा आपको पढकर....आनंद आ गया...
सादर...
रिश्तों की लाखों ही नदियाँ, मुझमे आकर हर रोज़ मिलीं !
ReplyDeleteदुर्भाग्य मगर देखो मेरा, होता खारापन दूर नहीं !!
....मर्मस्पर्शी प्रस्तुति!!
bahut sundar prastuti,ek alag drishtikone.
ReplyDeleteसागर जी
ReplyDeleteआज पहली बार पढा है आपको और सच मे बहुत अच्छा लगा…………बेहद उम्दा अभिव्यक्ति।
वाह क्या बात है सागर जी....
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 28 - 07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- खामोशी भी कह देती है सारी बातें -
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeletebahut sunder rachna ...
ReplyDeleteshubhkamnayen.
wah SAGAR....bahut pyari see abhivyakti!
ReplyDeleteSaagar si gahraai wale bhaav liye hai yeh rachanaa.
ReplyDeleteBadhai
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