Saturday, 6 August 2011

मेरे दोस्त, मेरे अनमोल तोहफ़े..!!!

बैठा मैं सोचता हूँ,
कब से उदास यूँ ,
जो खुद है मेरा तोहफ़ा

उसे तोहफ़ा क्या दूँ?
मेरी ख़ुशी नज़र उसे,

मेरी उम्र भी नज़र
कुछ और दे ख़ुदा
जो उसे नज़र मैं करूँ 
हैरां हुआ ख़ुदा भी,
ये सुन कर दुआ मेरी,
बोला- जहाँ उसी को दिया जिस पर निसार तू .... 

22 comments:

  1. सागर जी बहुत सुंदर कविता। बधाई।

    ReplyDelete
  2. सच ! एक सच्चा दोस्त अनमोल तोहफे से कम नहीं होता है..सुन्दर...

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर सागर जी,,,
    मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये....

    ReplyDelete
  4. दोस्ती को समर्पित सुंदर रचना . आपको मित्रता दिवस की शुभकामनाये

    ReplyDelete
  5. बहुत खूब ... दोस्ती हो तो ऐसी ..

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  7. Sagar Ji..mitra diwas ko ek saprim bhent hai aapaki rachana..aabhar

    ReplyDelete
  8. Lajwaab kavita.....bdhai
    jai hind jai bharatLajwaab kavita.....bdhai
    jai hind jai bharat

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर रचना ......शुभकामनाये !

    ReplyDelete
  10. मुझे क्षमा करे की मैं आपके ब्लॉग पे नहीं आ सका क्यों की मैं कुछ आपने कामों मैं इतना वयस्थ था की आपको मैं आपना वक्त नहीं दे पाया
    आज फिर मैंने आपके लेख और आपके कलम की स्याही को देखा और पढ़ा अति उत्तम और अति सुन्दर जिसे बया करना मेरे शब्दों के सागर में शब्द ही नहीं है
    पर लगता है आप भी मेरी तरह मेरे ब्लॉग पे नहीं आये जिस की मुझे अति निराशा हुई है

    ReplyDelete
  11. मित्रता यही तो है.
    बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
    हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  12. Sunder sabdo me khubsuerti se bayan ker diye aapne dosti ke mayne ...........badhai

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

    ReplyDelete
  14. bahut sundar rachna, aabhar.

    ReplyDelete
  15. waah bahut sundar....dosti se badhkar kuchh nahi....

    ReplyDelete
  16. क्या बात है ... सब कुछ उसी को देना .... गज़ब का प्रेम है ... गहरा एहसास लिए ...

    ReplyDelete