कई दफ़े सोचता हूँ कि तुम कहाँ हो?
कि इस आंगन में पाँयजेबर की कोई खनक ही नही
कि सामने मेहंदी के पेड़ की एक पत्ती भी तो न टूटी
कि कुआं तो अब भी प्यासा हैं रस्सी की इक छुअन के लिये
कि घर के दरवाजे पे कोई झालर नही टंगी अब तक
कि तुम थी भी,
या सिर्फ़ शब्दों का हेर-फेर था?
अहसासों का था तिनका कोई
तो फिर क्यों मैं ग़ज़ल पढ़ने से डरता अब तक?
क्यों उलझी रहती हैं
सब कहते हैं-यहाँ कोई तो नही
फिर मैं किससे कहता हूँ-
सिर्फ़ एक के दिखते सबको
पर कोई हैं,
जो क़दम-दर-क़दम मेरे साथ-साथ चलता हैं...
जो क़दम-दर-क़दम मेरे साथ-साथ चलता हैं...
सांस-दर-सांस मेरे सीने में सुलगता हैं....
बहुत खूब सागर जी....एहसासों और शब्दों को बहुत ही खूबसूरती से एक रचना पिरोया है आपने....हर एक पंक्ति अपने आप में एक रचना रचती है...
ReplyDeleteखूबसूरती से लिखे एहसास ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteये सच हैं कि कदमो के निशां
ReplyDeleteसिर्फ़ एक के दिखते सबको
पर कोई हैं,
जो कदम-दर-कदम मेरे साथ चलता हैं...
सांस-दर-सांस मेरे सीने में सुलगता हैं....
लफ्ज़ -दर-लफ्ज़ मेरी नज़्म में उतरता हैं.....
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति सागर जी.ह्रदय के भाव शब्दों में बहुत ही खूबसूरती से उतारे हैं आपने.
पहेली संख्या -४२
ये सच हैं कि कदमो के निशां
ReplyDeleteसिर्फ़ एक के दिखते सबको
पर कोई हैं,
जो कदम-दर-कदम मेरे साथ-साथ चलता हैं...
सांस-दर-सांस मेरे सीने में सुलगता हैं....
लफ्ज़ -दर-लफ्ज़ मेरी नज़्म में उतरता हैं.....dil ke ehsaas
बहुत बढ़िया सर।
ReplyDelete------
कल 29/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत बढ़िया. ..बहुत खूब ..
ReplyDeletesundar abhiwyaki...
ReplyDeletesundar abhivyakti...
ReplyDeleteसुन्दर रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना , सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeletebahut sunder.... sath ke pics ne jaan dal di...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मार्मिक, भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteये सच हैं कि कदमो के निशां
ReplyDeleteसिर्फ़ एक के दिखते सबको
पर कोई हैं,
जो कदम-दर-कदम मेरे साथ-साथ चलता हैं...
सांस-दर-सांस मेरे सीने में सुलगता हैं....
लफ्ज़ -दर-लफ्ज़ मेरी नज़्म में उतरता हैं...
बहुत सुन्दर एहसास....
कई दफ़े सोचता हूँ कि तुम कहाँ हो?
ReplyDeleteसरल सहज भावनाए मन को छू लेती है.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://no-bharat-ratna-to-sachin.blogspot.com/
sundar abhivayakti...
ReplyDeleteअहसासों का था तिनका कोई
ReplyDeleteया फिर सिर्फ़ विचारो की अदला-बदली?
सागर की असीम गहराई में कितने बेशकीमती मोती छुपे हैं यह सागर को भी नहीं पता होता.सागर-मंथन करते रहें और ऐसे ही रत्न-जवाहरात से हमें मालामाल करते रहें.उत्कृष्ट रचना हेतु आभार.
कुआं तो अब भी प्यासा हैं रस्सी की इक छुअन के लिये...
ReplyDeleteअद्भुत! ..... बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
हर एक पहरा जबरदस्त एह्सासों की दुहाई दे रहा है.....इतनी शिद्द्त से भी कोइ महसूस कर सकता है किसी को ये इसे पढ कर जाना.
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ...........
ReplyDeleteबहुत खूब ... सोच की उड़ान कहाँ कहाँ तक ले गयी ...
ReplyDeleteइसी सोच से निकली कविता भी लाजवाब है ...
बेहद खूबसूरत....
ReplyDeleteपहली बार हूं आपके ब्लॉग पर...अच्छा लगा..
अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से 1 ब्लॉग सबका
आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ |सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteआशा
बहुत ख़ूबसूरत रचना
ReplyDeleteअकथनीय
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteBeautifully crafted Sagar...nice work..
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteohh bahaut hi khubsurat likah hai.... aapki ek-ek saans....kisi ke liye sulagti hai...hr lafz kisi ko pukarta hai...apke hr kadam kisi ke nishanon pr chalte hain....
ReplyDeletewahh..
ReplyDeletelajawab prastuti...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteतुझमे ही तो बस गयीं हूँ तेरा साया बन कर
ReplyDeleteअपनी बात कहती हूँ सदा तेरे शब्द बन कर
जानती हूँ इस मृगमारीचिका का कही कोई अंत नही
महसूस करके देखो , बसी तो हूँ तेरी खुशबू बन कर
करती भी क्या जब जहाँ ने ऐतराज किया, रहूँ संग तेरी बनकर
तुम भी तो ना थे हौसले कर पाये , चलते मेरा हाथ थामकर
मगर जुदा रह नही सकते थे हम,मृत्यू की पनाह में भी जा कर
तो बस गयी सदा के लिये तेरे जिस्म में तेरी हमदम बन कर