अल्लाह को याद कर लो, फिर रमज़ान आ गया
नीयत को पाक कर लो, फिर रमज़ान आ गया
ख़ुश्बू-ए-तरावीह में, हर सख्श सराबोर
आग़ाज़-ए-हयात कर लो, फिर रमज़ान आ गया
दुनिया से ख़त्म हो सके, माहौल-ए-क़ज़ा अब
इन्सां की क़द्र कर लो, फिर रमज़ान आ गया
फरमा रहे रसूल, तुम ख़ाना-ए-दिल में अब
जज़्बे-मुहब्बत भर लो, फिर रमज़ान आ गया
खुशकिस्मतों को मिलते हैं, लम्हें नमाज़ के
इबादत बुलन्द कर लो, फिर रमज़ान आ गया
शिकवा-शिकायतों का बहर, दरकिनार कर
हम सब गले लगें, तो फिर रमज़ान आ गया .................
Humare Sabhi deshwasiyon ko ramzaan pak bahut bahut mubark ho........................
ReplyDeleteबेहद खुबसुरत नज्म। रमजान मुबारक।
ReplyDeleteपादरी, मौलवी, पंडितों का वहम
ReplyDeleteगाड, अल्लाह, भगवान् में फर्क क्या .
सर्वधर्म समभाव को प्रस्तुत करती बहुत सुन्दर रचना. आभार
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति सागर जी, मुबारक
ReplyDeleteआपको भी रमजान मुबारक..
ReplyDeleteसुन्दर भावों से सजा सुन्दर गज़ल......
ReplyDeleteखुशकिस्मतों को मिलते हैं, लम्हें नमाज़ के
ReplyDeleteइबादत बुलन्द कर लो, फिर रमज़ान आ गया ... bahut badhiyaa
बेहद खुबसुरत नज्म। रमजान मुबारक।
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
ramjan apko bahut bahut mubarak.
ReplyDeletebahut umda gazal.
बहुत सुंदर पंक्तियाँ..... शुभकामनायें सभी को
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गजल. आभार...
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
sagar sahib,
ReplyDeletebehtareen peshkah!
har ek sher laajawab.....
ramjaan mubarak...
प्रिय बंधुवर आशीष अवस्थी 'सागर'जी
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
अन्य धर्मावलंबियों की आस्था का सम्मान हमारी स्वस्थ सनातन परंपरा का हिस्सा है ।
जैसे आपने संकीर्ण मानसिकता त्याग कर रमज़ान मुबारक संबंधी रचना लिखी , मुस्लिम भाई-बहन नवरात्रि पर्व , कृष्ण जन्माष्टमी पर लिख कर सौहार्द और दूसरे धर्मावलंबियों की भावना को आदर दे तो भाईचारे और विश्वास का माहौल बनने में मदद मिले …
अल्लाह को याद कर लो, फिर रमज़ान आ गया
नीयत को पाक कर लो, फिर रमज़ान आ गया
दुनिया से ख़त्म हो सके, माहौल-ए-क़ज़ा अब
इन्सां की क़द्र कर लो, फिर रमज़ान आ गया
अच्छा लिखा है आपने मैंने भी लिखी है ऐसी रचनाएं …
भुलादे रंज़िशो - नफ़रत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
तू कर अल्लाह से उल्फ़त , अभी रमज़ान के दिन हैं !
पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारें …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
अल्लाह को याद कर लो, फिर रमज़ान आ गया
ReplyDeleteनीयत को पाक कर लो, फिर रमज़ान आ गया
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
खुशकिस्मतों को मिलते हैं, लम्हें नमाज़ के
इबादत बुलन्द कर लो, फिर रमज़ान आ गया
पूरी रचना मानवता और समन्वय के भावों से ओतप्रोत है ....आपका आभार
भाई सागर जी सुंदर गज़ल बधाई
ReplyDeleteसागर जी..आपकी मुबारकबाद हम तक पहुँच गयी.. शुक्रिया..
ReplyDeleteशिकवा-शिकायतों का बहर, दरकिनार कर
ReplyDeleteहम सब गले लगें, तो फिर रमज़ान आ गया ...
jahan khushiyaan hai wahi tyohaar ,aesa ho jaaye to phir kaya ,bahut hi achchha likha hai
दुनिया से ख़त्म हो सके, माहौल-ए-क़ज़ा अब
ReplyDeleteइन्सां की क़द्र कर लो, फिर रमज़ान आ गया ...
आपकी ग़ज़ल पढ़ कर मज़ा आ गया ... सभी को रमजान मुबारक ....