हे कमल नयन मुरली वाले,
इतना वरदान मुझे दीजै,
इतना वरदान मुझे दीजै,
राधा का पद वापस लेकर,
रुकमिणी का नाम दिला दीजै,
तुमने आशीष दिया था जो,
मैं सदा तुम्हारी कहलाऊं,
अब पता चल गया है मुझको,
कि फेरे सात गिने जाते,
वह युग-युग का एकत्व भाव,
वह सब बस एक छलावा था
है प्रेम समर्पण और त्याग ,
यह तुमने पाठ सिखाया था,
क्यों तुमसे निर्मित यह समाज
फिर दीपक से सूरज देखे?
सागर में बूंद समाहित है,
मुझ पर तुम पर उंगली उठती,
इन सात गिनतियो के बग़ैर,
हर प्रेम कथा घुटती रहती
कल का अखबार पढ़ा तुमने,
इक राधा जलकर ख़ाक हुई,
अब मोहन भी दम तोड़ रहा,
यह कैसी झूठी लाज हुई?
सौभाग्य मेरा मैं अब न हुई,
जो माँ की कोख़ में बच जाती,
तो फिर यह लोग जला देते
जब जनम अष्टमी पर कोई,
हम दोनों की मूरत छूता,
सच कहती हूँ हे बंशीधर,
मुझको उन सबसे भय लगता,
मैं देख रही हूँ, हे भगवन,
तुमको दुनिया की समझ नही,
विनती तुमसे करती गिरिधर,
तुम प्रेम भले मुझसे न करो
पर बस विवाह रच लो मुझसे,
वरना यह सब दुनिया वाले,
सब बीते कल की घड़ियाँ है,
अब जीवनसूत्र नही कुछ भी,
सब मंगलसूत्र की लड़िया हैं,
सब मंगलसूत्र की लड़िया हैं..
मैं देख रही हूँ, हे भगवन,
ReplyDeleteतुमको दुनिया की समझ नही,
विनती तुमसे करती गिरिधर,
तुम प्रेम भले मुझसे न करो
पर बस विवाह रच लो मुझसे,
वरना यह सब दुनिया वाले,
अब साथ नही रहने देंगे,
सही कहा है ये दुनिया वाले क्या जाने अलोकिक प्रेम को वे तो लोकिक ही पहचान लें वही बहुत है.सुन्दर प्रस्तुति श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें.
सही कहा आपने आज प्रेम का अर्थ सिर्फ यही रह गया है... हम राधा कृष्ण के प्रेम भाव का त्याग, समर्पण को नही देख पा रहे है... गहन चिंतन कराती रचना...
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteजब जनम अष्टमी पर कोई,
ReplyDeleteहम दोनों की मूरत छूता,
सच कहती हूँ हे बंशीधर,
मुझको उन सबसे भय लगता,
.... kaash log ise samjhen
अतिसुन्दर रचना और भावनात्मक संदेश... बहुत खूब...
ReplyDeleteati sundar , manbhavan ......... dil ko chu gayi .
ReplyDeleteबहुत खूब ... शुरुआत से ले कर अंत तक बभूत प्रभावी तरीके से सामाजिक समस्याओं को उठा दिया आपने ... अच्छा सन्देश ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति,भावात्मक संदेश ..बहुत -बहुत शुभकामनाएँ
ReplyDeleteभावो को बहुत खूबसूरती से बयाँ किया है और सही है आज कहाँ हैं उस प्रेम को जानने वाले समझने वाले ……………नही जानते फ़र्क लौकिक और अलौकिक प्रेम मे।
ReplyDeleteसागर की गहराई भर दी है सागर जी आपने.अनूठी रचना.
ReplyDeleteप्रिय मित्र सागरजी बेहद खूबसूरत रचना आभार
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण प्रस्तुति |बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteआशा
सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना ! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteआशीष जी बढ़िया कविता लिखते हैं आप... भाव और शब्द का विपुल भंडार है आपके पास....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , सशक्त रचना , सार्थक और खूबसूरत प्रस्तुति .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सागर भाई ..सुंदर चित्र हैं ...ये क्या आपने स्वयं बनाए हैं !
ReplyDeleteगहरा सच , बहरा जमाना
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