Wednesday 10 August 2011

आजादी की बेला पर.. इतिहास आज दुहराता हूँ...!!

जो दर्ज किताबी वरको में 
वो दर्द जुबा पर लाता हूँ 
फिर आजादी की बेला पर 
इतिहास आज दोहराता हूँ 

कहते हैं सब कुछ थम जाता 
पर काल कभी ना सोता हैं 
प्रतिदिन प्रतिपल का वो साक्षी 
इतिहास का प्रहरी होता हैं 

इक वो भी दौर जिया हमने 
इतिहास हमारा विस्मृत था 
चरवाहे, ढोंगी, सन्यासी
कहकर,जग हमसे परचित था 
सैन्धव में उदित हुआ सूरज 
पश्चिम की आखें चौंध गयी 
वह वृहत सभ्यता का स्तर
मानो इक चपला कौंध गयी 

यह कहते गर्व मुझे होता 
हम शिवलिंग पूजक तब भी थे 
हम मात्रदेवि के अनुयायी 
हम अन्नोत्पादक तब भी थे 

जब नग्न फिरा करता पश्चिम 
हमने वेदों की रचना की 
राजन्य,पुरोहित, सभा-समिति औ',
सेनानी की कल्पना की 
 थे वर्ण चार पर भेदभाव का 
लेश-मात्र स्थान नही 
व्याकरण, छंद, ज्योतिष रचते 
पर कही तनिक अभिमान नही 

मैडम क्यूरी पर इठलाते 
नादानों को क्या दिखलाऊ ?
लोंपा,मुद्रा, घोषा, कांक्षा  
अगणित विदुषी क्या बतलाऊ 

फिर वह प्रकाश उपजा जिसकी 
आभा में शांति  छटा बिखरी 
दुःख से मुक्ति का मार्ग मिला 
सुखदायी मानवता निखरी 

वह पल जिसकी स्मृति से ही 
नयनो  से सहज अश्रु बहते 
माँ से चिपका राहुल अबोध 
पर गौतम तनिक नही डिगते 
हिंसा तो पशुता की प्रतीक 
निर्ग्रन्थ यही हैं बतलाते 
बस पंचमहाव्रत ही उपाय 
कैवल्य मार्ग जब समझाते....

हैं हास अगर जीवनदायी
उपहास विनाश करा देता 
कुछ द्रुपदसुता जैसा विनोद 
फिर नन्दवंश दुहरा देता 

जब घनानन्द की राजसभा में 
विष्णु गुप्त की शिखा खुली,,
 जब पुनः शिखा तो बंधी किन्तु, 
वह राजसभा फिर नहीं खुली 
फिर वह भी दिन था आ पहुंचा 
इतिहास गर्व जिस पर करता 
हम क्यूँ नेतृत्व  करे जग का 
इतिहास प्रमाण दिया करता  

रणघोष ध्वनि जब शांत हुई 
इक शासक कलिंग विजेता था 
चहुँओर पताका फहराती 
जिसका वह स्वयं प्रणेता था 
 जब  युद्ध  साक्षी दिनकर  भी 
थक  कर अपने घर लौट गया 
वह शासक दंभपान करने 
तब समर भूमि की ओर गया 

घनघोर अँधेरे में दिखती थी 
अगणित नीली-पीली आखें 
आपस में लड़ते, गुर्राते 
गीदड़ो-भेडियो की साँसे 

दूसरा कदम बस रखना था 
वह फिसला दूर गिरा जाकर 
तन भीग गया उसका पूरा 
फिर उठा एक आश्रय पाकर 

ज्यों ही मशाल पकड़ी उसने 
और अन्धकार ज्यों दूर हुआ
टप-टप तन से चू रहा लहू 
कातर  सा निर्मम शूर हुआ 
ये हाय विजय  कैसी मेरी? 
कोटियो शवों के बीच खड़ा 
शोणित की बहती सरिता में 
सिर कही पड़े, धड़ कही पड़ा 

ऐ मेरे सैनिक उठो आज 
क्यों विजय-हर्ष से वंचित हो? 
ऐ प्रतिपक्षी  शव  शोकमुक्त 
क्यों  नही हार से चिंतित हो?

जिस कलिंग विजय पर जान गयी 
अब क्यों तटस्थ तुम उससे हो?
कब शांत रहे  उपक्रम से तुम 
अब क्यों उसके निर्णय से हो?

हे ईश्वर इस कल्पित मद ने 
यह क्या अनर्थ करवा डाला 
किस भय ने  विजय आवरण में 
झूठा पुरुषार्थ करा डाला 

पर क्षमाप्रार्थी हूँ जग का 
यह प्रायश्चित करता हूँ मैं 
यह अंतिम  भेरीघोष कलिंग 
अब धम्मघोष चुनता हूँ मैं 
हर युद्ध विजय है तत्वहीन  
अब धम्म विजय करना होगा 
सब प्रजा  पुत्रवत होती है  ,
ऐसा  निश्चय करना होगा 

इतिहास जानता है इसको 
कि कलिंग युद्ध अंतिम न रहा 
वह युग फिर कभी नही आया 
जब यह मानव रक्तिम न रहा 

कलिंग जीतने की लिप्सा 
तब से अब तक बढ़ती जाती 
कोई अशोक फिर पिघलेगा 
यह प्रायिकता घटती जाती 

जब ज्ञानचक्षु खुलते "सागर "
सब भेदभाव मिट जाता है 
क्या अपना और पराया क्या 
सारा दुराव मिट जाता है 
पश्चिम की बढ़ती आंधी पर 
पूरब का दीप जलाता हूँ 
फिर आजादी की बेला पर 
इतिहास आज दुहराता हूँ.
फिर आजादी की बेला पर
इतिहास आज दुहराता हूँ...   


45 comments:

  1. पश्चिम की बढ़ती आंधी पर
    पूरब का दीप जलाता हूँ
    फिर आजादी की बेला पर
    इतिहास आज दुहराता हूँ.

    ज़बरदस्त !

    ReplyDelete
  2. लाजवाब रचना... सुंदर ओजमयी और प्रेरक प्रस्तुति... अद्भुत .... बधाई !

    ReplyDelete
  3. सागर भाई साहब..अत्यन्त अद्भुत रचना रची आपने...
    इस रचना की हर एक पंक्ति महान व विचारणीय है..
    आपकी कलम निरंतर चलती रहे..इश्वर से कामना है..

    ReplyDelete
  4. सागर जी... आपने तो निशब्द कर दिया... एक रचना और पूरा इतिहास आँखों के सामने जिवंत हो गया... बहुत-बहुत धन्यवाद आपका अदभुत रचना पढवाने के लिए.... marvelous work....

    ReplyDelete
  5. वाह सागर जी आपने तो इतिहास सच मे दोहरा दिया…………॥शानदार अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  6. wah !
    ati sunder itihas dohraatee albelee rachana......
    aabhar

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर रचना ,सार्थक प्रस्तुति , खूबसूरत..

    ReplyDelete
  8. bhaai bahut achchhi rachanaa , tumne etihaas ko etni sundartaa se byaan kiyaa k man khush ho gaya . sach ek waqt tha jab bharat sirf bharat thaa jaa to yah india mai kahi kho sa gaya hai

    ReplyDelete
  9. Bahut bahut bahut bahut hi gajab ki rachna,,,,,,,,,,, bdhayiyannnnnnnnnn,,,
    jai hind jai bharat

    ReplyDelete
  10. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  11. आशीष क्या अद्भुत रचना रची..एक-एक पंक्तियां भावो से लिपटी हुई है..तुम्हारी रचना को सलाम...

    ReplyDelete
  12. अह ह ह ह हा, सागर भाई आज तो आनंद आ गया...
    चार पंक्तियाँ आपकी रचना को समर्पित है...

    “कौंधें बिजली सा लफ्ज़ लफ्ज़
    बादल का गर्जन भावों में
    जय हिंद हमारा नारा है
    गूंजे शहरों में गावों में”

    सादर निवेदन शायद यहाँ पर टंकण की त्रुटि प्रतीत होती है...
    इक वो भी दौर जिया हमने
    इतिहास हमारा विस्मर्त था...

    बधाई... शुभकामनाये... जयहिंद

    ReplyDelete
  13. nice poem
    but do not agree with many points.

    ReplyDelete
  14. शानदार लिखा है भाई..

    ReplyDelete
  15. आपने तो सही में इतिहास दुहराया है ....इस जीवंत रचना के लिए .बधाई

    ReplyDelete
  16. क्या कहने आशीष जी
    बहुत सुंदर रचना
    एक एक पंक्ति और एक एक शब्द
    बहुत बढिया

    ReplyDelete
  17. पश्चिम की बढ़ती आंधी पर
    पूरब का दीप जलाता हूँ
    फिर आजादी की बेला पर
    इतिहास आज दुहराता हूँ.
    kamal sunder kavita ke liye badhai
    rachana

    ReplyDelete
  18. जब ज्ञानचक्षु खुलते "सागर "
    सब भेदभाव मिट जाता है
    क्या अपना और पराया क्या
    सारा दुराव मिट जाता है |
    वसुधैव कुटुम्बकम भाव बहुत उत्तम |

    ReplyDelete
  19. कहते हैं सब कुछ थम जाता
    पर काल कभी ना सोता हैं
    प्रतिदिन प्रतिपल का वो साक्षी
    इतिहास का प्रहरी होता हैं ...

    बहुत ओजस्वी ... देश प्रेम से ओत प्रेत लाजवाब रचना है ... ये सच है समय बदलता रहता है ... इसलिए जागृत रहना जरूरी है ...

    ReplyDelete
  20. सुंदर ओजमयी प्रस्तुति .........

    ReplyDelete
  21. aadarneya sagarji
    ruh tak ko jhkdor diya is kavita ne ये हाय विजय कैसी मेरी?
    कोटियो शवों के बीच खड़ा
    शोणित की बहती सरिता में
    सिर कही पड़े, धड़ कही पड़ा

    aankhe nam ho gaee.....thanks a lot.

    ReplyDelete
  22. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  23. ओजमय इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें...
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  24. कमाल की रचना।
    बहुत सामयिक भी।

    ReplyDelete
  25. फिर वह भी दिन था आ पहुंचा
    इतिहास गर्व जिस पर करता
    हम क्यूँ नेतृत्व करे जग का
    इतिहास प्रमाण दिया करता

    रणघोष ध्वनि जब शांत हुई
    इक शासक कलिंग विजेता था
    चहुँओर पताका फहराती
    जिसका वह स्वयं प्रणेता था
    adbhut kya rachna likhi hai main to apne itihaas me poori tarah kho gayi .kai baar padhne layak ,tirange ke saath aaj is post ko bhi salaam .naam ka asar barabar najar aata hai ,swatantrata divas ki badhai .

    ReplyDelete
  26. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयां.

    ReplyDelete
  27. बहुत सुन्दर रचना देश प्रेम से ओत प्रोत ..अति सुन्दर ...ज्ञानवर्धक ...लाजबाब प्रस्तुति सुन्दर छवियों के साथ ..ये बत्ती गुल हुयी और दीपक आशा का जल गया ....
    भ्रमर ५

    प्रिय आशीष साग़र जी अभिनन्दन आप का भ्रमर का दर्द और दर्पण में -ढेर सारी शुभ कामनाएं स्वतंत्र दिवस पर -हिंदी और देश प्रेम को बढ़ा के आप ने दुगुना कर दिया
    आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५
    पश्चिम की बढ़ती आंधी पर
    पूरब का दीप जलाता हूँ
    फिर आजादी की बेला पर
    इतिहास आज दुहराता

    ReplyDelete
  28. बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार

    ReplyDelete
  29. Ozpurn rachana .. bahut badhiya..shubhkamna

    ReplyDelete
  30. देश भक्ति से ओतप्रोत सुन्दर भाव लिए रचना और सुन्दर चित्र |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  31. बहुत ही बेहतरीन रचना वो भी फ़ोटो के साथ तालमेल कर लिखी गयी एक अलग समां बन गया है।

    ReplyDelete
  32. जब घनानन्द की राजसभा में
    विष्णु गुप्त की शिखा खुली,,
    जब पुनः शिखा तो बंधी किन्तु,
    वह राजसभा फिर नहीं खुली

    superb lines........ :-)

    कलिंग जीतने की लिप्सा
    तब से अब तक बढ़ती जाती
    कोई अशोक फिर पिघलेगा
    यह प्रायिकता घटती जाती

    and these lines are awesome as it shows that still you love maths.....keep it up buddy!!!!! :-)

    ReplyDelete
  33. प्रिय बंधुवर आशीष सागर जी
    सस्नेहाभिवादन !

    पहले दिन ही पढ़ चुका था आपकी यह ओजस्वी रचना , सोचा बहुत तबीअत से विस्तार से लिखूंगा प्रतिक्रिया …

    आज पुनः ध्यान से पढ़ा … निस्संदेह मां सरस्वती की अनुकंपा है आप पर ।
    किसी एक बंध का उल्लेख करके निकल जाना कम-ज-कम यहां मेरे लिए संभव नहीं … :)
    हर चरण , हर पंक्ति में कुछ प्रिय है , कुछ विशेष है ।
    मन से शुभकामनाएं हैं , बधाई है !

    # मेल द्वारा भी बात करनी है …


    इधर ताज़ा घटनाक्रम पर लिखा पोस्ट किया है

    काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
    मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है

    न आए हैं तो पूरी रचना पढ़ने आइएगा …

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  34. … और हां , चित्र संयोजन भी सुंदर है । आप भी बहुत रुचि और श्रम और लगन से ब्लॉग पर काम करते हैं , कुछ कुछ मेरी तरह ही :)


    एक बार फिर से बहुत बहुत प्रभावशाली लेखन के लिए बधाई और शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  35. bahut khun . sundar abhivyakti . aapka blog bahut sundar hai . aapki lekhni ko badhai

    ReplyDelete
  36. आपको एवं आपके परिवार "सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया"की तरफ से भारत के सबसे बड़े गौरक्षक भगवान श्री कृष्ण के जनमाष्टमी के पावन अवसर पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें लेकिन इसके साथ ही आज प्रण करें कि गौ माता की रक्षा करेएंगे और गौ माता की ह्त्या का विरोध करेएंगे!

    मेरा उदेसीय सिर्फ इतना है की

    गौ माता की ह्त्या बंद हो और कुछ नहीं !

    आपके सहयोग एवं स्नेह का सदैव आभरी हूँ

    आपका सवाई सिंह राजपुरोहित

    सबकी मनोकामना पूर्ण हो .. जन्माष्टमी की आपको भी बहुत बहुत शुभकामनायें

    ReplyDelete
  37. जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  38. ओजपूर्ण प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  39. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

    ReplyDelete