Saturday 27 August 2011

कई दफ़े सोचता हूँ..!

कई दफ़े सोचता हूँ कि तुम कहाँ हो?
कि इस आंगन में पाँयजेबर की कोई खनक ही नही
कि सामने मेहंदी के पेड़ की एक पत्ती भी तो न टूटी
कि कुआं तो अब भी प्यासा हैं रस्सी की इक छुअन के लिये
कि उस तार पर भीगी कोई चुनरी नही सूखी अब तक
कि माँ के हथफूल अब तक कपड़े में लिपटे रखे
कि घर के दरवाजे पे कोई झालर नही टंगी अब तक
बहोत दफ़े सोचता हूँ कि तुम कहाँ हो?
कि सुबह की चाय अब तक दफ़्तर में ही पीता हूँ मैं
कि शाम अब तक मेरी होती हैं गंगा की रेत पर लिखते
बहोत दफ़े सोचता हूँ-
कि तुम थी भी,
या सिर्फ़ शब्दों का हेर-फेर था?
अहसासों का था तिनका कोई
या फिर सिर्फ़ विचारो की अदला-बदली?
ग़र नही थी,
तो फिर क्यों मैं ग़ज़ल पढ़ने से डरता अब तक?
क्यों उलझी रहती हैं 
रात की चादर की बेतरतीब सिलवटें?
क्यों सुबह का सूरज मेरी आखों में उगता पहले?
सब कहते हैं-यहाँ कोई तो नही
 फिर मैं किससे कहता हूँ-
"दो पल रुको तो, फिर चली जाना" 
ये सच हैं कि क़दमो के निशां
सिर्फ़ एक के दिखते सबको
पर कोई हैं,
 जो क़दम-दर-क़दम मेरे साथ-साथ चलता हैं...
सांस-दर-सांस मेरे सीने में सुलगता हैं....
लफ्ज़ -दर-लफ्ज़ मेरी नज़्म में उतरता हैं.....
कई दफ़े सोचता हूँ कि तुम कहाँ हो?




Monday 22 August 2011

हे कमल नयन मुरली वाले...!!!

    हे कमल नयन मुरली वाले,
इतना वरदान मुझे दीजै,
राधा का पद वापस लेकर,
रुकमिणी का नाम दिला दीजै,

तुमने आशीष दिया था जो,
मैं सदा तुम्हारी कहलाऊं,
अब पता चल गया है मुझको,
वह सब बस एक दिखावा था
मुरली की धुन में भूल गयी,
कि फेरे सात गिने जाते,
वह युग-युग का एकत्व भाव,
वह सब बस एक छलावा था

है प्रेम समर्पण और त्याग ,
यह तुमने पाठ सिखाया था,
क्यों तुमसे निर्मित यह समाज
फिर दीपक से सूरज देखे?
सागर में बूंद समाहित है,
यह उनमे भी रिश्ता देखे?
यह कैसा युग आ गया नाथ,
मुझ पर तुम पर उंगली उठती,
इन सात गिनतियो के बग़ैर,
हर प्रेम कथा घुटती रहती

कल का अखबार पढ़ा तुमने,
इक राधा जलकर ख़ाक हुई,
अब मोहन भी दम तोड़ रहा,
यह कैसी झूठी लाज हुई?
हे कृष्ण सोचती हूँ मैं यह,
सौभाग्य मेरा मैं अब न हुई,
जो माँ की कोख़ में बच जाती,
तो फिर यह लोग जला देते

जब जनम अष्टमी पर कोई,
हम दोनों की मूरत छूता,
सच कहती हूँ हे बंशीधर,
मुझको उन सबसे भय लगता,

मैं देख रही हूँ, हे भगवन,
तुमको दुनिया की समझ नही,
विनती तुमसे करती गिरिधर,
तुम प्रेम भले मुझसे न करो
पर बस विवाह रच लो मुझसे,
वरना यह सब दुनिया वाले,
अब साथ नही रहने देंगे,
वह प्रेम कर्म और ध्यान योग,
सब बीते कल की घड़ियाँ है,
अब जीवनसूत्र नही कुछ भी,
सब मंगलसूत्र की लड़िया हैं,
सब मंगलसूत्र की लड़िया हैं..

Wednesday 10 August 2011

आजादी की बेला पर.. इतिहास आज दुहराता हूँ...!!

जो दर्ज किताबी वरको में 
वो दर्द जुबा पर लाता हूँ 
फिर आजादी की बेला पर 
इतिहास आज दोहराता हूँ 

कहते हैं सब कुछ थम जाता 
पर काल कभी ना सोता हैं 
प्रतिदिन प्रतिपल का वो साक्षी 
इतिहास का प्रहरी होता हैं 

इक वो भी दौर जिया हमने 
इतिहास हमारा विस्मृत था 
चरवाहे, ढोंगी, सन्यासी
कहकर,जग हमसे परचित था 
सैन्धव में उदित हुआ सूरज 
पश्चिम की आखें चौंध गयी 
वह वृहत सभ्यता का स्तर
मानो इक चपला कौंध गयी 

यह कहते गर्व मुझे होता 
हम शिवलिंग पूजक तब भी थे 
हम मात्रदेवि के अनुयायी 
हम अन्नोत्पादक तब भी थे 

जब नग्न फिरा करता पश्चिम 
हमने वेदों की रचना की 
राजन्य,पुरोहित, सभा-समिति औ',
सेनानी की कल्पना की 
 थे वर्ण चार पर भेदभाव का 
लेश-मात्र स्थान नही 
व्याकरण, छंद, ज्योतिष रचते 
पर कही तनिक अभिमान नही 

मैडम क्यूरी पर इठलाते 
नादानों को क्या दिखलाऊ ?
लोंपा,मुद्रा, घोषा, कांक्षा  
अगणित विदुषी क्या बतलाऊ 

फिर वह प्रकाश उपजा जिसकी 
आभा में शांति  छटा बिखरी 
दुःख से मुक्ति का मार्ग मिला 
सुखदायी मानवता निखरी 

वह पल जिसकी स्मृति से ही 
नयनो  से सहज अश्रु बहते 
माँ से चिपका राहुल अबोध 
पर गौतम तनिक नही डिगते 
हिंसा तो पशुता की प्रतीक 
निर्ग्रन्थ यही हैं बतलाते 
बस पंचमहाव्रत ही उपाय 
कैवल्य मार्ग जब समझाते....

हैं हास अगर जीवनदायी
उपहास विनाश करा देता 
कुछ द्रुपदसुता जैसा विनोद 
फिर नन्दवंश दुहरा देता 

जब घनानन्द की राजसभा में 
विष्णु गुप्त की शिखा खुली,,
 जब पुनः शिखा तो बंधी किन्तु, 
वह राजसभा फिर नहीं खुली 
फिर वह भी दिन था आ पहुंचा 
इतिहास गर्व जिस पर करता 
हम क्यूँ नेतृत्व  करे जग का 
इतिहास प्रमाण दिया करता  

रणघोष ध्वनि जब शांत हुई 
इक शासक कलिंग विजेता था 
चहुँओर पताका फहराती 
जिसका वह स्वयं प्रणेता था 
 जब  युद्ध  साक्षी दिनकर  भी 
थक  कर अपने घर लौट गया 
वह शासक दंभपान करने 
तब समर भूमि की ओर गया 

घनघोर अँधेरे में दिखती थी 
अगणित नीली-पीली आखें 
आपस में लड़ते, गुर्राते 
गीदड़ो-भेडियो की साँसे 

दूसरा कदम बस रखना था 
वह फिसला दूर गिरा जाकर 
तन भीग गया उसका पूरा 
फिर उठा एक आश्रय पाकर 

ज्यों ही मशाल पकड़ी उसने 
और अन्धकार ज्यों दूर हुआ
टप-टप तन से चू रहा लहू 
कातर  सा निर्मम शूर हुआ 
ये हाय विजय  कैसी मेरी? 
कोटियो शवों के बीच खड़ा 
शोणित की बहती सरिता में 
सिर कही पड़े, धड़ कही पड़ा 

ऐ मेरे सैनिक उठो आज 
क्यों विजय-हर्ष से वंचित हो? 
ऐ प्रतिपक्षी  शव  शोकमुक्त 
क्यों  नही हार से चिंतित हो?

जिस कलिंग विजय पर जान गयी 
अब क्यों तटस्थ तुम उससे हो?
कब शांत रहे  उपक्रम से तुम 
अब क्यों उसके निर्णय से हो?

हे ईश्वर इस कल्पित मद ने 
यह क्या अनर्थ करवा डाला 
किस भय ने  विजय आवरण में 
झूठा पुरुषार्थ करा डाला 

पर क्षमाप्रार्थी हूँ जग का 
यह प्रायश्चित करता हूँ मैं 
यह अंतिम  भेरीघोष कलिंग 
अब धम्मघोष चुनता हूँ मैं 
हर युद्ध विजय है तत्वहीन  
अब धम्म विजय करना होगा 
सब प्रजा  पुत्रवत होती है  ,
ऐसा  निश्चय करना होगा 

इतिहास जानता है इसको 
कि कलिंग युद्ध अंतिम न रहा 
वह युग फिर कभी नही आया 
जब यह मानव रक्तिम न रहा 

कलिंग जीतने की लिप्सा 
तब से अब तक बढ़ती जाती 
कोई अशोक फिर पिघलेगा 
यह प्रायिकता घटती जाती 

जब ज्ञानचक्षु खुलते "सागर "
सब भेदभाव मिट जाता है 
क्या अपना और पराया क्या 
सारा दुराव मिट जाता है 
पश्चिम की बढ़ती आंधी पर 
पूरब का दीप जलाता हूँ 
फिर आजादी की बेला पर 
इतिहास आज दुहराता हूँ.
फिर आजादी की बेला पर
इतिहास आज दुहराता हूँ...   


Saturday 6 August 2011

मेरे दोस्त, मेरे अनमोल तोहफ़े..!!!

बैठा मैं सोचता हूँ,
कब से उदास यूँ ,
जो खुद है मेरा तोहफ़ा

उसे तोहफ़ा क्या दूँ?
मेरी ख़ुशी नज़र उसे,

मेरी उम्र भी नज़र
कुछ और दे ख़ुदा
जो उसे नज़र मैं करूँ 
हैरां हुआ ख़ुदा भी,
ये सुन कर दुआ मेरी,
बोला- जहाँ उसी को दिया जिस पर निसार तू .... 

Tuesday 2 August 2011

रमज़ान मुबारक

अल्लाह को याद कर लो, फिर रमज़ान आ गया
नीयत को पाक कर लो, फिर रमज़ान आ गया 

ख़ुश्बू-ए-तरावीह में, हर सख्श सराबोर
आग़ाज़-ए-हयात कर लो, फिर रमज़ान आ गया 

दुनिया से ख़त्म हो सके, माहौल-ए-क़ज़ा अब
इन्सां की क़द्र कर लो, फिर रमज़ान आ गया 

फरमा रहे रसूल, तुम ख़ाना-ए-दिल में अब
जज़्बे-मुहब्बत भर लो, फिर रमज़ान आ गया 

खुशकिस्मतों को मिलते हैं, लम्हें नमाज़ के
इबादत बुलन्द कर लो, फिर रमज़ान आ गया 

शिकवा-शिकायतों का बहर, दरकिनार कर
हम सब गले लगें, तो  फिर रमज़ान आ गया .................