Saturday, 16 November 2013

ग़ज़ल.....!!!

तालीम क्या थी, बस इतनी सी ग़फ़लत आई
मैं बुतपरस्त हुआ , तेरी इबादत आई 

मेरा रदीफ़, मेरा काफ़िया सभी तुम थीं 
मेरी ग़ज़ल से तेरे नाम की शोहरत आई 

उठी दीवार जब भी दो दिलों के आँगन में 
मेरे हिस्से में तिरे प्यार की हसरत आई 

किसे ग़रज़ थी मोहब्बत की आयत पढ़ता 
बात निकली तो बस बीच में दौलत आई 

अजीब बात है एक ही क़िताब को पढ़कर 
तुझे नफ़रत आई औ मुझको मोहब्बत आई 

दौर-ए-इश्क़ में बस ख़ाक हुयी हासिल "सागर" 
न आग का दरिया आया,न डूबने की नौबत आई !!

Tuesday, 23 July 2013

तुम......!!!

तुम
कभी चट्टान का सीना
कभी दो बाँहों की गुड़िया
कभी सवालों की बोझिल सांझ
कभी इतराती गुनगुनी सुबह …. !

तुम
कभी अंतहीन ख़ामोशी
कभी चीखती लहरें
कभी अहिल्या सी निश्चल
कभी नदी सा बदलाव.....!

तुम
कभी सूनी चौखट
कभी चुभती शेहनाई
कभी ढहती दीवारें
कभी नींव की पहली ईंट....!

तुम
कभी शब्द
कभी अर्थ
कभी मैं
कभी तुम
कभी शून्य
कभी रिक्त
तुम …… !!