तालीम क्या थी, बस इतनी सी ग़फ़लत आई
मैं बुतपरस्त हुआ , तेरी इबादत आई
मेरा रदीफ़, मेरा काफ़िया सभी तुम थीं
मेरी ग़ज़ल से तेरे नाम की शोहरत आई
उठी दीवार जब भी दो दिलों के आँगन में
मेरे हिस्से में तिरे प्यार की हसरत आई
किसे ग़रज़ थी मोहब्बत की आयत पढ़ता
बात निकली तो बस बीच में दौलत आई
अजीब बात है एक ही क़िताब को पढ़कर
तुझे नफ़रत आई औ मुझको मोहब्बत आई
दौर-ए-इश्क़ में बस ख़ाक हुयी हासिल "सागर"
न आग का दरिया आया,न डूबने की नौबत आई !!
मैं बुतपरस्त हुआ , तेरी इबादत आई
मेरा रदीफ़, मेरा काफ़िया सभी तुम थीं
मेरी ग़ज़ल से तेरे नाम की शोहरत आई
उठी दीवार जब भी दो दिलों के आँगन में
मेरे हिस्से में तिरे प्यार की हसरत आई
किसे ग़रज़ थी मोहब्बत की आयत पढ़ता
बात निकली तो बस बीच में दौलत आई
अजीब बात है एक ही क़िताब को पढ़कर
तुझे नफ़रत आई औ मुझको मोहब्बत आई
दौर-ए-इश्क़ में बस ख़ाक हुयी हासिल "सागर"
न आग का दरिया आया,न डूबने की नौबत आई !!
जनाबे आली ये सागर की लहरें तो सुस्त पड़ गयीं थी
ReplyDelete...सुंदर ग़ज़ल के साथ आगाज़ ....वल्लाह क्या बात है
बेहतरीन गजल..
ReplyDelete:-)
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मेरा रदीफ़, मेरा काफ़िया सभी तुम थीं
मेरी ग़ज़ल से तेरे नाम की शोहरत आई
किसे ग़रज़ थी मोहब्बत की आयत पढ़ता
बात निकली तो बस बीच में दौलत आई
वाह ! वाऽह…!
आदरणीय आशीष अवस्थी 'सागर' जी
बहुत समय से आपकी याद आ रही थी , आ नहीं पाया लेकिन.
आज आया तो आनंद आ गया ! बधाई !
बहुत बहुत शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार