Wednesday, 2 November 2011

वो शाम....!

रात के आँचल को ढकती हुई,वो धूल की शाम
चाँद की जुल्फों में खिलती हुई,वो फूल की शाम 
गाँव को लौटते  चरवाहे का वो अज़नबी सा गीत 
दिन के हारे हुए सूरज पे जैसे शाम की जीत..

उड़ते पंछियों की मस्त धुन में गाती वो शाम
भीनी-भीनी सी ख़ुश्बुओं का जश्न मनाती वो शाम 
आज तक याद हैं, हँसती हुयी वो रात की शाम 
हमारे प्यार की वो पहली मुलाक़ात की शाम..

गाँव से दूर टीले पे गड़ा वो पत्थर 
जिसपे बैठा था,मैं इक अज़नबी की तरह
वो बिखरे-बिखरे से बाल,सूनी पलकों पे वो धूल के कण..

किसकी तलाश थी,कुछ भी पता नही 
वो कौन राह थी,कुछ भी पता नही 
माथे पर उमड़ती थी,लकीरे कितनी 
पर किसकी चाह थी,कुछ भी पता नही..

याद हैं तुमको हवा का वो मदहोश झोंका
जिसमे मदहोश हुआ,आज तक मदहोश हूँ मैं,
हर तरफ गूंजती है आज तक शहनाइयो की गूंज,
कांपते लब हैं मग़र आज तक ख़ामोश हूँ मैं..

याद है मेरी तरफ़ देखकर वो मुस्कराना तेरा 
एकटक देखना,कभी वो पलकें चुराना तेरा 
मैं तो बस मर ही गया था उस इक पल के लिए
मुझे इक ज़िन्दगी सी दे गया,वो शर्माना तेरा.. 

वो इक ख्वाब था या मासूम निगाहों का प्यार 
वो ख़ुदा का था कोई तोहफ़ा या बारिश की फुहार 
वो हिना की थी कोई खुश्बू या इबादत-ए-हयात 
वो ख़ुशी थी,मोहब्बत थी या ज़िन्दगी का सबात..

मैं तुझे ढूंढ़ता हूँ आज तक,हर रात में जुगनू की तरह 
मैं तुझे पूजता हूँ आज तक,हर फूल में खुश्बू की तरह
ऐसा भटका हूँ,तितली का टूटा हुआ पर हूँ जैसे 
ऐ ख़ुदा तू ही बता,क्यों अधूरा सा सफ़र हूँ जैसे...

मेरे मालिक तू इस तरह मेरा इम्तहान न ले 
दफ़्न कर दे मुझे,मेरी ज़िन्दगी की जान न ले 
वो जा रहा है मुझे छोड़कर,इक अज़नबी की तरह 
जिसने ग़र सांस भी ली हैं,तो मेरी मोहब्बत के साथ..

मैं उदास बाग़ सा हूँ,हर फूल बिखर गया जिसका 
इक मुसाफ़िर हूँ,कारवां गुज़र गया जिसका 
पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ 
फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ..

वो चराग़ जो जला था,हमारी पहली मुलाक़ात के साथ 
बुझ गया आज तेरी शहनाइयो की रात के साथ......



56 comments:

  1. yadein.....takleef dene se baaj nahi aati kya karein.....

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  2. वो चराग़ जो जला था,हमारी पहली मुलाक़ात के साथ
    बुझ गया आज तेरी शहनाइयो की रात के साथ......

    वाह! बहुत खूब सर!

    सादर

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  3. मैं उदास बाग़ सा हूँ,हर फूल बिखर गया जिसका
    इक मुसाफ़िर हूँ,कारवां गुज़र गया जिसका
    पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
    फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ.....वाह: बहुत सुन्दर..शुभकामना...

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  4. बहुत सुन्दर भाव एवं शब्द संयोजन ....लाजबाब ...सचित्र सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. Bahut hi sundar anubhuti...
    Kripya likte rahen......

    Jay shree ram

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  6. बहुत खूबसूरती से भवनाओं को उकेरा गया है ,
    मगर भाई अंत इतना दुखद क्यों ..............
    हर चिराग की अपनी उम्र होती है , उसका बुझना उजाले का जाना नही होता , ना डूबता अगर सूरज आसमां में, चाँद का आना नही होता.....

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  7. उड़ते पंछियों की मस्त धुन में गाती वो शाम
    भीनी-भीनी सी ख़ुश्बुओं का जश्न मनाती वो शाम
    आज तक याद हैं, हँसती हुयी वो रात की शाम
    हमारे प्यार की वो पहली मुलाक़ात की शाम..bahut khoobsurat

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  8. मन के भावों और प्रकृति दोनों का सुंदर चित्रण ....

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  9. सुंदर/बढ़िया रचना... वाह!
    सादर बधाई...

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  10. बहुत सुन्दर भाव एवं शब्द संयोजन

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  11. वो इक ख्वाब था या मासूम निगाहों का प्यार
    वो ख़ुदा का था कोई तोहफ़ा या बारिश की फुहार
    वो हिना की थी कोई खुश्बू या इबादत-ए-हयात
    वो ख़ुशी थी,मोहब्बत थी या ज़िन्दगी का सबात.....
    behad hi laajwaab rachna.....
    kabil e tareef
    jai hind jai bharat

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  12. गुलज़ार की खुशबू की महक अ रही अहि ... लाजवाब ...

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  13. आज तक याद हैं, हँसती हुयी वो रात की शाम
    हमारे प्यार की वो पहली मुलाक़ात की शाम..
    पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
    फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ..
    very nice....

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  14. प्रभावशाली कविता.... बहुत सुंदर

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  15. जज्बातों को बहुत अच्छे से ढाला है,,,
    सुन्दर रचना ...

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  16. अद्भित बिम्ब-दृश्य खींचा है आपने।

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  17. पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
    फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ..

    संवेदनशील रचना .....

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  18. किसकी तलाश थी,कुछ भी पता नही
    वो कौन राह थी,कुछ भी पता नही
    माथे पर उमड़ती थी,लकीरे कितनी
    पर किसकी चाह थी,कुछ भी पता नही..
    बहुत ही खूबसूरत रचना |

    थोडा मैं भी लिखती हूँ :)
    न जाने किसकी तलाश में गुजर जाती थी वो शाम
    किस राह से होकर गुजर जाती थी मेरी वो शाम
    माथे पर आती लकीरो में गुजर जाती थी वो शाम
    पर अब तक जान पाई किसके इंतज़ार में थी वो शाम |

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  19. This comment has been removed by the author.

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  20. मानता हूँ है नहीं आसान उसको भूलना
    शाम जो तुमने बितायीं संग उनको भूलना
    किन्तु सोचो एक क्षण को क्या रहीं मजबूरियाँ
    क्यूँ करीं स्वीकार उसने प्रीत से ये दूरियाँ
    और तुम भी जानते हो बात यह संशय नहीं
    छोड़ कर इन पत्थरों पर वो हँसी अपनी गयी
    ज्ञात है उसको तुम्हारे जीर्ण हिरदय की दशा
    और इससे व्यथित उसका मन नहीं तबसे हँसा
    उस प्रेम के साक्षी रहे पत्थर तुम्हारे साथ हैं
    किन्तु उसके विचारों पर भी सहस्त्रों पाश हैं
    है तुम्हे स्वातंत्र्य तुम उस शाम को ही रोक लो
    किन्तु उसकी वेदना के विषय में भी सोच लो
    तुम बने पत्थर तुम्हें उत्तर कोई देना नहीं
    किन्तु उसको प्राप्त कुछ क्षण भी यही सुविधा नहीं|

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  21. This comment has been removed by the author.

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  22. मानता हूँ है नहीं आसान उसको भूलना
    शाम जो तुमने बितायीं संग उनको भूलना
    किन्तु सोचो एक क्षण को क्या रहीं मजबूरियाँ
    क्यूँ करीं स्वीकार उसने प्रीत से ये दूरियाँ
    और तुम भी जानते हो बात यह संशय नहीं
    छोड़ कर इन पत्थरों पर वो हँसी अपनी गयी
    ज्ञात है उसको तुम्हारे जीर्ण हिरदय की दशा
    और इससे व्यथित उसका मन नहीं तबसे हँसा
    उस प्रेम के साक्षी रहे पत्थर तुम्हारे साथ हैं
    किन्तु उसके विचारों पर भी सहस्त्रों पाश हैं
    है तुम्हे स्वातंत्र्य तुम उस शाम को ही रोक लो
    किन्तु उसकी वेदना के विषय में भी सोच लो
    तुम बने पत्थर तुम्हें उत्तर कोई देना नहीं
    किन्तु उसको प्राप्त कुछ क्षण भी यही सुविधा नहीं|

    kuchh samjhe baalak?

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  23. प्रिय बंधुवर आशीष अवस्थी 'सागर'जी
    सस्नेहाभिवादन !

    सुंदर रचना !

    आपका छंद-प्रेम आह्लादित करता है ।
    इतनी विस्तृत काव्य रचनाएं आप करते हैं ,
    छंद आवृत्तियों में एकरूपता भी अपनाएं तो काव्य का महत्व और बढ़ जाएगा ।



    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  24. "पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
    फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ.."

    अत्यंत कारूणिक! दिल को छूती, भावों को जड़-सी करती रचना !

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  25. पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
    फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ..

    भावों का बहुत अद्भुत चित्रण...बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना।

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  26. सागर,जी
    मन के सुंदर भावो समेट कर शानदार रचना उम्दा पोस्ट
    मेरे नए पोस्ट -वजूद- में आपका स्वागत है....

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  27. भावों का सुंदर चित्रण एवं संयोजन..!!

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  28. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    सादर

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  29. सागर जी सबसे पहले मेरे तरफ से जन्मदिन पे ढेर सारी शुभकामनायें ...! आप जीयें हजारो साल ...और अपनी भावनाएं रचनाएँ अपनी ब्लॉग के उपवन में यूँ ही महकाते रहे ...

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  30. पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
    फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ.dard ka ehsah ubharkar aaya hai in pangtiyon men.....

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  31. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

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  32. दर्द के एहसास की सुंदर अभिव्यक्ति!

    आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  33. प्रिय आशीष अवस्थी "सागर" जी
    सस्नेहाभिवादन !

    पहले पता ही नहीं चला …
    विलंब से ही सही…
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    आपको जन्मदिवस के शुभ अवसर पर बहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाएं …
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    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  34. सुंदर रचना।
    जन्‍मदिन की शुभकामनाएं......

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  35. सागर जी ,जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं..

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  36. खूबसूरत रचना आज् पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ
    कल आप का जन्म दिन था ..लेट ही सही .जन्म दिन कि बधाई

    रचना बुत अच्छी लगी
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

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  37. बहुत खूब ...
    शुभकामनायें आपको !

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  38. जिंदगी गम के अंधेरों से बाहर निकल ,
    ढूंढ ले नयी राह में कोई हमसफ़र नया ...

    ऑफिस के कम कि वजह से दौरे पर था, देर से पता चला..

    आपके जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं.

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  39. विलम्ब से ज्ञात हुआ- जन्म-दिवस की शुभ कामनायें.

    प्रिय आशीष अवस्थी तुमको सागर जितना प्यार
    सागर जितना गहरा ,मेरा इतना - इतना प्यार.

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  40. भाई सागर जी बहुत सुन्दर कविता बधाई और शुभकामनायें

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  41. शब्द और भावों का सुंदर समन्वय !

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  42. बहुत खूब लिखा है आपने ।

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  43. वो चराग़ जो जला था,हमारी पहली मुलाक़ात के साथ
    बुझ गया आज तेरी शहनाइयो की रात के साथ......

    ऐसी रचना तो शायद पहली बार पढ़ी है मैंने, एक अजीब सी कशिश है इसमें, शब्द नहीं हैं तारीफ के लिए मेरे पास.. फिर भी कहती हूँ लाजवाब रचना

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  44. ऐसा भटका हूँ,तितली का टूटा हुआ पर हूँ जैसे
    ऐ ख़ुदा तू ही बता,क्यों अधूरा सा सफ़र हूँ जैसे...
    दर्द भरी सुंदर रचना ....

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  45. aapke naam ki hi tarah kavita mein v bahut gahraayi hai... kisi se alag hone ka dard dil ko chhu gaya jaise...

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  46. वाह बहुत खूब लिखते हैं आप मेरी पोस्ट पर आने के लिए शुक्रिया कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें। :-)

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  47. अजी वो नहीं,तो कोई और सही। बस,इतना ध्यान रहे कि उसे आपका कवि होना पता नहीं चलना चाहिए।

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  48. मैं तुझे ढूंढ़ता हूँ आज तक,हर रात में जुगनू की तरह
    मैं तुझे पूजता हूँ आज तक,हर फूल में खुश्बू की तरह
    ऐसा भटका हूँ,तितली का टूटा हुआ पर हूँ जैसे

    बहुत सुन्दर प्रतीक

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  49. sagar ji namaskar . behad khoobsoorat rachnaon ke liye abhar. .. ak prashn kya ap kanpur ke Khyatiprapt Kavi Shri Suresh Awasthi ji ke putr hahin ?

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  50. is rachna ko padne ke baad kisi ko koi shbd yaad aa jaye taarif ke liye to smjhiye,us ne ise theek se pda hi nahi,main nishbd hun.....

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  51. मकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
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    आज 15/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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