रात के आँचल को ढकती हुई,वो धूल की शाम
चाँद की जुल्फों में खिलती हुई,वो फूल की शाम
गाँव को लौटते चरवाहे का वो अज़नबी सा गीत
दिन के हारे हुए सूरज पे जैसे शाम की जीत..
उड़ते पंछियों की मस्त धुन में गाती वो शाम
भीनी-भीनी सी ख़ुश्बुओं का जश्न मनाती वो शाम
आज तक याद हैं, हँसती हुयी वो रात की शाम
हमारे प्यार की वो पहली मुलाक़ात की शाम..
गाँव से दूर टीले पे गड़ा वो पत्थर
जिसपे बैठा था,मैं इक अज़नबी की तरह
वो बिखरे-बिखरे से बाल,सूनी पलकों पे वो धूल के कण..
किसकी तलाश थी,कुछ भी पता नही
वो कौन राह थी,कुछ भी पता नही
माथे पर उमड़ती थी,लकीरे कितनी
पर किसकी चाह थी,कुछ भी पता नही..
याद हैं तुमको हवा का वो मदहोश झोंका
जिसमे मदहोश हुआ,आज तक मदहोश हूँ मैं,
हर तरफ गूंजती है आज तक शहनाइयो की गूंज,
कांपते लब हैं मग़र आज तक ख़ामोश हूँ मैं..
याद है मेरी तरफ़ देखकर वो मुस्कराना तेरा
एकटक देखना,कभी वो पलकें चुराना तेरा
मैं तो बस मर ही गया था उस इक पल के लिए
मुझे इक ज़िन्दगी सी दे गया,वो शर्माना तेरा..
वो इक ख्वाब था या मासूम निगाहों का प्यार
वो ख़ुदा का था कोई तोहफ़ा या बारिश की फुहार
वो हिना की थी कोई खुश्बू या इबादत-ए-हयात
वो ख़ुशी थी,मोहब्बत थी या ज़िन्दगी का सबात..
मैं तुझे ढूंढ़ता हूँ आज तक,हर रात में जुगनू की तरह
मैं तुझे पूजता हूँ आज तक,हर फूल में खुश्बू की तरह
ऐसा भटका हूँ,तितली का टूटा हुआ पर हूँ जैसे
ऐ ख़ुदा तू ही बता,क्यों अधूरा सा सफ़र हूँ जैसे...
मेरे मालिक तू इस तरह मेरा इम्तहान न ले
दफ़्न कर दे मुझे,मेरी ज़िन्दगी की जान न ले
वो जा रहा है मुझे छोड़कर,इक अज़नबी की तरह
जिसने ग़र सांस भी ली हैं,तो मेरी मोहब्बत के साथ..
मैं उदास बाग़ सा हूँ,हर फूल बिखर गया जिसका
इक मुसाफ़िर हूँ,कारवां गुज़र गया जिसका
पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ..
वो चराग़ जो जला था,हमारी पहली मुलाक़ात के साथ
yadein.....takleef dene se baaj nahi aati kya karein.....
ReplyDeleteवो चराग़ जो जला था,हमारी पहली मुलाक़ात के साथ
ReplyDeleteबुझ गया आज तेरी शहनाइयो की रात के साथ......
वाह! बहुत खूब सर!
सादर
मैं उदास बाग़ सा हूँ,हर फूल बिखर गया जिसका
ReplyDeleteइक मुसाफ़िर हूँ,कारवां गुज़र गया जिसका
पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ.....वाह: बहुत सुन्दर..शुभकामना...
बहुत सुन्दर भाव एवं शब्द संयोजन ....लाजबाब ...सचित्र सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteBahut hi sundar anubhuti...
ReplyDeleteKripya likte rahen......
Jay shree ram
बहुत खूबसूरती से भवनाओं को उकेरा गया है ,
ReplyDeleteमगर भाई अंत इतना दुखद क्यों ..............
हर चिराग की अपनी उम्र होती है , उसका बुझना उजाले का जाना नही होता , ना डूबता अगर सूरज आसमां में, चाँद का आना नही होता.....
उड़ते पंछियों की मस्त धुन में गाती वो शाम
ReplyDeleteभीनी-भीनी सी ख़ुश्बुओं का जश्न मनाती वो शाम
आज तक याद हैं, हँसती हुयी वो रात की शाम
हमारे प्यार की वो पहली मुलाक़ात की शाम..bahut khoobsurat
मन के भावों और प्रकृति दोनों का सुंदर चित्रण ....
ReplyDeleteसुंदर/बढ़िया रचना... वाह!
ReplyDeleteसादर बधाई...
bahut gahre bhavo ko khoobsoorti se ukera hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव एवं शब्द संयोजन
ReplyDeleteवो इक ख्वाब था या मासूम निगाहों का प्यार
ReplyDeleteवो ख़ुदा का था कोई तोहफ़ा या बारिश की फुहार
वो हिना की थी कोई खुश्बू या इबादत-ए-हयात
वो ख़ुशी थी,मोहब्बत थी या ज़िन्दगी का सबात.....
behad hi laajwaab rachna.....
kabil e tareef
jai hind jai bharat
गुलज़ार की खुशबू की महक अ रही अहि ... लाजवाब ...
ReplyDeleteआज तक याद हैं, हँसती हुयी वो रात की शाम
ReplyDeleteहमारे प्यार की वो पहली मुलाक़ात की शाम..
पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
फ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ..
very nice....
प्रभावशाली कविता.... बहुत सुंदर
ReplyDeleteजज्बातों को बहुत अच्छे से ढाला है,,,
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...
अद्भित बिम्ब-दृश्य खींचा है आपने।
ReplyDeleteपता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
ReplyDeleteफ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ..
संवेदनशील रचना .....
किसकी तलाश थी,कुछ भी पता नही
ReplyDeleteवो कौन राह थी,कुछ भी पता नही
माथे पर उमड़ती थी,लकीरे कितनी
पर किसकी चाह थी,कुछ भी पता नही..
बहुत ही खूबसूरत रचना |
थोडा मैं भी लिखती हूँ :)
न जाने किसकी तलाश में गुजर जाती थी वो शाम
किस राह से होकर गुजर जाती थी मेरी वो शाम
माथे पर आती लकीरो में गुजर जाती थी वो शाम
पर अब तक जान पाई किसके इंतज़ार में थी वो शाम |
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ReplyDeleteमानता हूँ है नहीं आसान उसको भूलना
ReplyDeleteशाम जो तुमने बितायीं संग उनको भूलना
किन्तु सोचो एक क्षण को क्या रहीं मजबूरियाँ
क्यूँ करीं स्वीकार उसने प्रीत से ये दूरियाँ
और तुम भी जानते हो बात यह संशय नहीं
छोड़ कर इन पत्थरों पर वो हँसी अपनी गयी
ज्ञात है उसको तुम्हारे जीर्ण हिरदय की दशा
और इससे व्यथित उसका मन नहीं तबसे हँसा
उस प्रेम के साक्षी रहे पत्थर तुम्हारे साथ हैं
किन्तु उसके विचारों पर भी सहस्त्रों पाश हैं
है तुम्हे स्वातंत्र्य तुम उस शाम को ही रोक लो
किन्तु उसकी वेदना के विषय में भी सोच लो
तुम बने पत्थर तुम्हें उत्तर कोई देना नहीं
किन्तु उसको प्राप्त कुछ क्षण भी यही सुविधा नहीं|
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ReplyDeleteमानता हूँ है नहीं आसान उसको भूलना
ReplyDeleteशाम जो तुमने बितायीं संग उनको भूलना
किन्तु सोचो एक क्षण को क्या रहीं मजबूरियाँ
क्यूँ करीं स्वीकार उसने प्रीत से ये दूरियाँ
और तुम भी जानते हो बात यह संशय नहीं
छोड़ कर इन पत्थरों पर वो हँसी अपनी गयी
ज्ञात है उसको तुम्हारे जीर्ण हिरदय की दशा
और इससे व्यथित उसका मन नहीं तबसे हँसा
उस प्रेम के साक्षी रहे पत्थर तुम्हारे साथ हैं
किन्तु उसके विचारों पर भी सहस्त्रों पाश हैं
है तुम्हे स्वातंत्र्य तुम उस शाम को ही रोक लो
किन्तु उसकी वेदना के विषय में भी सोच लो
तुम बने पत्थर तुम्हें उत्तर कोई देना नहीं
किन्तु उसको प्राप्त कुछ क्षण भी यही सुविधा नहीं|
kuchh samjhe baalak?
ReplyDelete♥
प्रिय बंधुवर आशीष अवस्थी 'सागर'जी
सस्नेहाभिवादन !
सुंदर रचना !
आपका छंद-प्रेम आह्लादित करता है ।
इतनी विस्तृत काव्य रचनाएं आप करते हैं ,
छंद आवृत्तियों में एकरूपता भी अपनाएं तो काव्य का महत्व और बढ़ जाएगा ।
हार्दिक मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
"पता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
ReplyDeleteफ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ.."
अत्यंत कारूणिक! दिल को छूती, भावों को जड़-सी करती रचना !
बहुत सुंदर.
ReplyDeletebahut hi sundar rachana hai
ReplyDeleteपता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
ReplyDeleteफ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ..
भावों का बहुत अद्भुत चित्रण...बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना।
सागर,जी
ReplyDeleteमन के सुंदर भावो समेट कर शानदार रचना उम्दा पोस्ट
मेरे नए पोस्ट -वजूद- में आपका स्वागत है....
भावों का सुंदर चित्रण एवं संयोजन..!!
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteसादर
सागर जी सबसे पहले मेरे तरफ से जन्मदिन पे ढेर सारी शुभकामनायें ...! आप जीयें हजारो साल ...और अपनी भावनाएं रचनाएँ अपनी ब्लॉग के उपवन में यूँ ही महकाते रहे ...
ReplyDeleteपता है ऐ मेरे हमदम,मैं आज भी वही पर हूँ
ReplyDeleteफ़र्क हैं,उसी पत्थर पे बैठा आज एक पत्थर हूँ.dard ka ehsah ubharkar aaya hai in pangtiyon men.....
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteदर्द के एहसास की सुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDelete♥
प्रिय आशीष अवस्थी "सागर" जी
सस्नेहाभिवादन !
पहले पता ही नहीं चला …
विलंब से ही सही…
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आपको जन्मदिवस के शुभ अवसर पर बहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाएं …
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- राजेन्द्र स्वर्णकार
सुंदर रचना।
ReplyDeleteजन्मदिन की शुभकामनाएं......
सागर जी ,जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं..
ReplyDeleteखूबसूरत रचना आज् पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ
ReplyDeleteकल आप का जन्म दिन था ..लेट ही सही .जन्म दिन कि बधाई
रचना बुत अच्छी लगी
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
बहुत खूब ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
जिंदगी गम के अंधेरों से बाहर निकल ,
ReplyDeleteढूंढ ले नयी राह में कोई हमसफ़र नया ...
ऑफिस के कम कि वजह से दौरे पर था, देर से पता चला..
आपके जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं.
विलम्ब से ज्ञात हुआ- जन्म-दिवस की शुभ कामनायें.
ReplyDeleteप्रिय आशीष अवस्थी तुमको सागर जितना प्यार
सागर जितना गहरा ,मेरा इतना - इतना प्यार.
sundar!
ReplyDeleteभाई सागर जी बहुत सुन्दर कविता बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteशब्द और भावों का सुंदर समन्वय !
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने ।
ReplyDeleteवो चराग़ जो जला था,हमारी पहली मुलाक़ात के साथ
ReplyDeleteबुझ गया आज तेरी शहनाइयो की रात के साथ......
ऐसी रचना तो शायद पहली बार पढ़ी है मैंने, एक अजीब सी कशिश है इसमें, शब्द नहीं हैं तारीफ के लिए मेरे पास.. फिर भी कहती हूँ लाजवाब रचना
ऐसा भटका हूँ,तितली का टूटा हुआ पर हूँ जैसे
ReplyDeleteऐ ख़ुदा तू ही बता,क्यों अधूरा सा सफ़र हूँ जैसे...
दर्द भरी सुंदर रचना ....
aapke naam ki hi tarah kavita mein v bahut gahraayi hai... kisi se alag hone ka dard dil ko chhu gaya jaise...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब लिखते हैं आप मेरी पोस्ट पर आने के लिए शुक्रिया कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें। :-)
ReplyDeleteअजी वो नहीं,तो कोई और सही। बस,इतना ध्यान रहे कि उसे आपका कवि होना पता नहीं चलना चाहिए।
ReplyDeletebehad sundar .. bhavpurn dard bhara ..
ReplyDeleteमैं तुझे ढूंढ़ता हूँ आज तक,हर रात में जुगनू की तरह
ReplyDeleteमैं तुझे पूजता हूँ आज तक,हर फूल में खुश्बू की तरह
ऐसा भटका हूँ,तितली का टूटा हुआ पर हूँ जैसे
बहुत सुन्दर प्रतीक
sagar ji namaskar . behad khoobsoorat rachnaon ke liye abhar. .. ak prashn kya ap kanpur ke Khyatiprapt Kavi Shri Suresh Awasthi ji ke putr hahin ?
ReplyDeleteis rachna ko padne ke baad kisi ko koi shbd yaad aa jaye taarif ke liye to smjhiye,us ne ise theek se pda hi nahi,main nishbd hun.....
ReplyDeleteमकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
आज 15/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!