जब-जब अंतस की खाई में,
गुमसुम होकर तन्हा बैठा
जाने-अनजाने से मुझमे,
इक कविता बनकर उतरी तुम....
स्मृतियों के हिमपातो में,
मैं विरह ताप में जब झुलसा
मेरे सीने के गोमुख से,
इक कविता बन कर उतरी तुम....
मेरी रेखाओं के विलोम,
मैं तेरा ही पर्याय रहा
तुम मोती बन अनमोल हुई,
मैं सीप वर्म असहाय रहा....
तेरे दरवाज़े से जब भी,
बिन दस्तक दिए चला आया
मेरे पावो के छालो में,
इक कविता बन कर उतरी तुम...
तेरे ख्वाबो से विलग हुआ,
पतझड़ के बेबस पत्तो सा
जीवन चौसर पर हार गया,
अर्जुन सा खड़ा निहत्थो सा...
जब किसी मंच पर प्रेम काव्य,
पढ़ते-पढ़ते ख़ामोश हुआ
श्रोता में बहकर अश्रुधार,
इक कविता बन कर उतरी तुम...
जब जेठ दुपहरी में शीतल
इक मंद बयार बहा करती
जब-जब सावन की बूंदों में,
इक जलती अगन छुआ करती...
जब इन पथराई आखों में,
तृप्ति से बढ़ कर प्यास हुई,
जब-जब 'सागर' की बाँहों में
धरती पिघली आकाश हुई...
घनघोर अमावस में जब-जब
घनघोर अमावस में जब-जब
पूरनमासी का चाँद उगा
मेरे खंडित उपवासों से
इक कविता बनकर उतरी तुम.....!!!
बहुत खूब!
ReplyDeleteसादर
मेरी रेखाओं के विलोम,
ReplyDeleteमैं तेरा ही पर्याय रहा
तुम मोती बन अनमोल हुई,
मैं सीप वर्म असहाय रहा....bahut hi badhiyaa
घनघोर अमावस में जब-जब
ReplyDeleteपूरनमासी सा चाँद उगा
मेरे खंडित उपवासों से
इक कविता बनकर उतरी तुम.....!!!
...बहुत खूब! शब्दों, भावों और लय का उत्कृष्ट संयोजन...
वाह …………बहुत ही भावप्रवण रचना दिल को छू गयी।
ReplyDeleteमेरे पावो के छालो में,
ReplyDeleteइक कविता बन कर उतरी तुम...
खूबसूरत रचना ..भावमयी ...प्रवाहमयी ..
गजब के भाव....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
bahut sunder shabd vyanjana. behtareen.
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति..... बड़ी अच्छी लगी कविता ....
ReplyDeletebahut sunder ..
ReplyDeleteश्रोता में बहकर अश्रुधार,
ReplyDeleteइक कविता बन कर उतरी तुम...
कविता यूँ ही उतरती है और प्रेरणा का रूप तो कोई भी हो सकता है... और एक बार ऐसी कविता बन कर 'वह/तुम' उतर गयी फिर सुनने/पढ़ने वाले की आँखें नम हुए बिना नहीं रह सकती!
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteekdam gazab ka.......
ReplyDeletea very beautiful composition.. really to whom we like , we love they always remain with us at every moment... that only beacuse true love........
ReplyDeleteमेरी रेखाओं के विलोम,
ReplyDeleteमैं तेरा ही पर्याय रहा
तुम मोती बन अनमोल हुई,
मैं सीप वर्म असहाय रहा........बहुत ही सुन्दर शब्दो में अपने प्यारे-प्यारे भावों को पिरोया है..बहुत खूब..
bahut hi gahare bhavo se likhi
ReplyDeleteati uttam rachana hai..
sundar prastuti...
स्मृतियों के हिमपातो में,
ReplyDeleteमैं विरह ताप में जब झुलसा
मेरे सीने के गोमुख से,
इक कविता बन कर उतरी तुम....
मेरी रेखाओं के विलोम,
मैं तेरा ही पर्याय रहा
तुम मोती बन अनमोल हुई,
मैं सीप वर्म असहाय रहा....
सम्पूर्ण कविता ही बेहद सुन्दर
सागर जी,..बहुत भावमयी बेहतरीन पोस्ट,दिल को छू गई...
ReplyDeleteमरे पोस्ट 'शब्द'मे आपका इंतजार है,....
कविता का यह रूप इससे सुंदर हो ही नहीं सकता इस पर टिप्पणी नहीं बधाई बधाई ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteबधाई
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
आशा
बहुत ही खुबसूरत कविता है, सागर जी . आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे . शुभकामनायें....
ReplyDeleteघनघोर अमावस में जब-जब
ReplyDeleteपूरनमासी का चाँद उगा
मेरे खंडित उपवासों से
इक कविता बनकर उतरी तुम.....!!!
wah!!! Bahut khub
www.poeticprakash.com
.
ReplyDeleteघनघोर अमावस में जब-जब
पूरनमासी का चाँद उगा
मेरे खंडित उपवासों से
इक कविता बनकर उतरी तुम.....!!!
पराकाष्ठा ! बहुत सुंदर प्रेम-कविता है सागर जी !
एक प्रेम गीत हमारे यहां भी है -
मैं सच कहता हूं , तुमको मेरी याद बहुत तड़पाएगी
फ़ुरसत में आइएगा…
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जब किसी मंच पर प्रेम काव्य,
ReplyDeleteपढ़ते-पढ़ते ख़ामोश हुआ
श्रोता में बहकर अश्रुधार,
इक कविता बन कर उतरी तुम...
सुंदर भावप्रबल रचना ...
जैसे भाव छलछला रहे हैं ....
बहुत सुंदर ...!!
Bahut hi sundar.. dil ke kareeb..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव .
ReplyDeleteजब किसी मंच पर प्रेम काव्य,
ReplyDeleteपढ़ते-पढ़ते ख़ामोश हुआ
श्रोता में बहकर अश्रुधार,
इक कविता बन कर उतरी तुम...
बहुत सुंदर भाव ...........
आपके मन से निकले उदगार बहुत ही सुंदर हैं । मेरी कामना है कि आप निरंतर लिखते रहें । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteतेरे दरवाज़े से जब भी,
ReplyDeleteबिन दस्तक दिए चला आया
मेरे पावो के छालो में,
इक कविता बन कर उतरी तुम...
komal bhav sunder
rachana
prem aur shabdo ka bahut hi gehra rishta hai. Prem chupane aur jatane, dono hi ke liye shabd ko athaah jaroorat hai.
ReplyDeleteApke shabd bahut hi sundar hai...aankhon mai aansoon lane se khud ko roke nahi payee magar sab kuch bahut hi achcha laga.
Aati rahungi aapki nayee kavitayo par muskurahat bikherne.
-Shaifali
सागर जी,...
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर...आइये
आज चली कुछ ऐसी बातें, बातों पर हो जाएँ
किसके दम पर इतनी बातें, इस पर भी हो जायें बातें
दिल की धड़कन से हैं बातें, सासों पर निर्भर हैं बातें
जब तक करती हैं ये बातें, तब तक है अपनी भी बातें
अभी बहुत अनकही हैं बातें, सोच समझ कर करना बातें
बहुत सुंदर भाव| धन्यवाद|
ReplyDeleteनए प्रतीकों के साथ कविता सुन्दर बन पडी है ।
ReplyDeleteनए प्रतीकों के साथ कविता सुन्दर बन पडी है ।
ReplyDeleteदिल की धड़कन से हैं बातें, सासों पर निर्भर हैं बातें
ReplyDeleteजब तक करती हैं ये बातें, तब तक है अपनी भी बातें
sundar abhivyakti
तेरे दरवाज़े से जब भी,
ReplyDeleteबिन दस्तक दिए चला आया
मेरे पावो के छालो में,
इक कविता बन कर उतरी तुम...
वाह सागर जी, बिल्कुल ही नया अंदाज है
देख मुझे कर दिया बंद
था द्वार, तुम्हारा खेल सही
मेरे दिल के जख्मों से फिर
कविता बनकर निकली तुम....
आज चली कुछ ऐसी बातें,बातों पर हो जाएँ बातें
ReplyDeleteनयनों में जब होतीं बातें, क्या समझोगे ऎसी बातें
हर भाषा में होतीं बातें, कुछ सच्ची कुछ झूठी बातें
हार की बातें जीत की बातें, गीत और संगीत की बातें
ज्ञान और विज्ञान की बातें, हर मौसम पर करते बातें
mere post me svaagt hai
तेरे दरवाज़े से जब भी,
ReplyDeleteबिन दस्तक दिए चला आया
मेरे पावो के छालो में,
इक कविता बन कर उतरी तुम...
BAHUT SUNDAR AWASTHI JI
वाह क्या बात है एक-एक पंक्ति बेहद खूबसूरत है बहुत खूब लिखा है आपने...लाजवाब रचना
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन सुंदर पोस्ट ,...
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
भावपूर्ण शब्द उकेरें है ..!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..!
भाई सागर जी आप वाकई सागर हैं |अच्छी कविता और ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया |
ReplyDeleteशब्दों के सागर में जब .....लेखनी का जाला फेक दिया ....कुछ मोती कुछ सीपे आई ....तब कविता बनकर उभरी तुम ...........सुन्दर काव्य सृजन ...भावनावों की टोली के साथ ..शब्दों का ताना बाना ......बहुत ही प्रभावी
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDelete"जब इन पथराई आखों में,
ReplyDeleteतृप्ति से बढ़ कर प्यास हुई"
वाह ! जवाब नहीं ! अत्यंत सुंदर उपमा समाये बहुत सुंदर रचना ।
वाह ! बहुत खूबसूरत रचना .........
ReplyDeleteवाह वाह सागर जी..
ReplyDeleteपहली बार आपका ब्लॉग देखा..बहुत सुन्दर रचनाएँ हैं आपकी...
शुभकामनाएँ.
तेरे दरवाज़े से जब भी,
ReplyDeleteबिन दस्तक दिए चला आया
मेरे पावो के छालो में,
इक कविता बन कर उतरी तुम...
जब किसी मंच पर प्रेम काव्य,
पढ़ते-पढ़ते ख़ामोश हुआ
श्रोता में बहकर अश्रुधार,
इक कविता बन कर उतरी तुम...
Behad khub...
Behad bhavpravan aur laybaddhh, keep writing... excellent stuff...
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