भावनाओं के खेत में बोये थे चंद बीज़
के एक रोज़ प्रेम की फसल लहलहाएगी ,
मिलन के फूल खिलेंगे ,
स्पर्श की खुश्बू बिखरेगी,
एक नया स्रजन होगा !!
हम सींच ना सके,
प्रेमांकुर तो फूटने से पहले ही
विलीन हो गए,
उसी भावनाओं के खेत में
और स्वतः उग गए -
कुछ खरपतवार !!
ईर्ष्या,दर्द , नफ़रत
और सूनापन तो ऐसा उगा
के काटे नही कटता है...
अब तो शब्दों की आरी भी
मोथरी हो चली...
एक माली , फूलों के कवि में तब्दील हो गया..
और कविता निरुद्देश्य नियति बन गयी.,.,!!!!!!!!!!!
'भावनावों के खेत में बोये थे चन्द बीज'--------'अब तो शब्दों की आरी भी मोथरी हो चली'। बहुत अच्छा ,कुछ कविताये लिखी जाती है और कुछ ऐसी लिखी जाती है ।बहुत बढ़िया साथी ।
ReplyDeleteधन्यवाद् मित्र !!
ReplyDeleteएक माली , फूलों के कवि में तब्दील हो गया..
ReplyDeleteऔर कविता निरुद्देश्य नियति बन गयी.,.,!!!!!!!!!!!
इन दो लाइनों ने तो मेरी कविता समझने की दिशा बदल दी....
बहुत शुन्दर कविता है..
ReplyDeleteइस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की अनुकम्पा करें, आभारी होऊंगा .
अच्छी रचना !
ReplyDeleteबधाई !
One of the most beautiful poems I have ever read in Hindi, reminds of a hindi serial, phir wohi talash.
ReplyDeleteYou write beautifully!
bahut acchi prastuti .....
ReplyDeleteएक माली , फूलों के कवि में तब्दील हो गया..
ReplyDeleteऔर कविता निरुद्देश्य नियति बन गयी.
माली का काम निरुधेश्य तो नहीं हो सकता न ...
शायद बीज बोने में कोई कमी रह गई हो
जीवन की आपाधापी में
हम सींच ना सके,
प्रेमांकुर तो फूटने से पहले ही
विलीन हो गए,
उसी भावनाओं के खेत में
और स्वतः उग गए -
कुछ खरपतवार !!
आपकी इस प्रविष्टि की जितनी प्रशंसा की जाए , कम है …
सुंदर शब्दों से सजे सुंदर भाव !
बहुत सुंदर … बधाई !
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे , यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…
आशीष अवस्थी 'सागर' जी
नमस्कार !
आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं
नई पोस्ट बदले हुए बहुत समय हो गया है …
आपकी प्रतीक्षा है सारे हिंदी ब्लॉगजगत को …
:)
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.