Sunday, 9 April 2023

 उम्र वाले तमाम उम्र जो बना पाए,

उन मकानों में उम्र भर किरायेदार रहे !!


चौखटें तोड़ दी, दीवारें पोत दी लिखकर,

जिनको रहना था वो, दहलीज के उस पार रहे !!


नई छतों से मैं चूता रहा लहू बन कर,

लोग दीवारों की सीलन के रफ़ूगार रहे !!


चंद सिक्कों में उलझ कर ही रह गए रिश्ते,

हम रहे या न रहे, अपना कारोबार रहे !!


मेरे मरने की ख़बर उनको साल बाद मिली,

शौक़ पढ़ने का था, पढ़ते  कई अख़बार रहे !!


कल भी जायेंगे औ' आयेंगे तिरी महफ़िल में,

बस तिरे हुस्न ओ मोहब्बत का ए'तिबार रहे !!


- आशीष 

09/04/2023

4:35 am

1 comment:

  1. मेरे मयखाने में तमाम उम्र महफिलों का दौर था,
    बस वही खामोश थे, और चारो ओर शोर था...
    hows u Ashish

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