Sunday, 9 April 2023

 उम्र वाले तमाम उम्र जो बना पाए,

उन मकानों में उम्र भर किरायेदार रहे !!


चौखटें तोड़ दी, दीवारें पोत दी लिखकर,

जिनको रहना था वो, दहलीज के उस पार रहे !!


नई छतों से मैं चूता रहा लहू बन कर,

लोग दीवारों की सीलन के रफ़ूगार रहे !!


चंद सिक्कों में उलझ कर ही रह गए रिश्ते,

हम रहे या न रहे, अपना कारोबार रहे !!


मेरे मरने की ख़बर उनको साल बाद मिली,

शौक़ पढ़ने का था, पढ़ते  कई अख़बार रहे !!


कल भी जायेंगे औ' आयेंगे तिरी महफ़िल में,

बस तिरे हुस्न ओ मोहब्बत का ए'तिबार रहे !!


- आशीष 

09/04/2023

4:35 am

Saturday, 2 May 2020

उम्र भर जलता रहा चराग़-ए-आरज़ू अपना..

उम्र भर जलता रहा चराग़-ए-आरज़ू अपना,
लोग कहते रहे बड़ी मुख़तसर दीवाली थी !!

रंग-ओ-बू फाख्ता थे जिस गुलों की महफ़िल में,
उसी महफ़िल में मिरी सांझ ढलने वाली थी !!

इम्तहानों में गुज़ारी थी ज़िन्दगी हमनें,
ज़िन्दगी क्या थी, कोई दस्ता-ए-सवाली थी !!

लुटे पड़े थे आंधियों से दरख़्त औे, मकां,
अब न जाले थे कहीं,और न कहीं जाली थी !!

वो गया करके मुझे, मेरे हवाले " सागर "
वो नज़ाकत वो मुहब्बत सभी ख़याली थी !!

- सागर

Friday, 20 February 2015

प्रेम के गीत कुछ...!!

प्रेम के गीत कुछ, शब्द में ढल गये..
प्राण चेतन हुये,तन रतन हो गये, 
रूह इक थाल में,द्वार पर रख गया,
जल उठे सब दिये,जागरन हो गये..

सांझ तक प्रश्न ही प्रश्न थी ज़िन्दगी,
एक उत्तर उगा,सब निरुत्तर हुये,
न विजय शेष थी,न पराजय बची,
सप्तस्वर भी मिटे,रिक्त अक्षर हुये..

तुम उतरते गये,तुम ही तुम रह गये,
तुम ही पूजन हुये,तुम भजन हो गये..

फिर उठा मौन का ज्वार,सागर मथा,
तुम गहन हो गये,तुम गहनतम् हुये,
बज उठा नाद अनहद,प्रभा खिल उठी,
तुम ही प्रेमी हुये,तुम ही प्रियतम हुये..

फिर चले तुम गये,दीप से ज्योति से,
आगमन न रहे, न गमन हो गये....!!

Saturday, 16 November 2013

ग़ज़ल.....!!!

तालीम क्या थी, बस इतनी सी ग़फ़लत आई
मैं बुतपरस्त हुआ , तेरी इबादत आई 

मेरा रदीफ़, मेरा काफ़िया सभी तुम थीं 
मेरी ग़ज़ल से तेरे नाम की शोहरत आई 

उठी दीवार जब भी दो दिलों के आँगन में 
मेरे हिस्से में तिरे प्यार की हसरत आई 

किसे ग़रज़ थी मोहब्बत की आयत पढ़ता 
बात निकली तो बस बीच में दौलत आई 

अजीब बात है एक ही क़िताब को पढ़कर 
तुझे नफ़रत आई औ मुझको मोहब्बत आई 

दौर-ए-इश्क़ में बस ख़ाक हुयी हासिल "सागर" 
न आग का दरिया आया,न डूबने की नौबत आई !!

Tuesday, 23 July 2013

तुम......!!!

तुम
कभी चट्टान का सीना
कभी दो बाँहों की गुड़िया
कभी सवालों की बोझिल सांझ
कभी इतराती गुनगुनी सुबह …. !

तुम
कभी अंतहीन ख़ामोशी
कभी चीखती लहरें
कभी अहिल्या सी निश्चल
कभी नदी सा बदलाव.....!

तुम
कभी सूनी चौखट
कभी चुभती शेहनाई
कभी ढहती दीवारें
कभी नींव की पहली ईंट....!

तुम
कभी शब्द
कभी अर्थ
कभी मैं
कभी तुम
कभी शून्य
कभी रिक्त
तुम …… !!

Saturday, 18 August 2012

एक नया स्रजन

भावनाओं के खेत में बोये थे चंद बीज़             
के एक रोज़ प्रेम की फसल लहलहाएगी ,
मिलन के फूल खिलेंगे ,
स्पर्श की खुश्बू  बिखरेगी, 
एक नया स्रजन होगा !!
पर जीवन की आपाधापी में 
हम सींच ना सके,
प्रेमांकुर तो फूटने से पहले ही 
विलीन हो गए, 
उसी भावनाओं के खेत में 
और स्वतः  उग गए -
कुछ खरपतवार !!
ईर्ष्या,दर्द , नफ़रत 
और सूनापन तो ऐसा उगा 
के काटे नही कटता है...
अब तो शब्दों की आरी भी 
मोथरी हो चली...
एक माली , फूलों के कवि में तब्दील हो गया..
और कविता निरुद्देश्य नियति बन गयी.,.,!!!!!!!!!!!




Saturday, 11 August 2012

क्षमा-याचना


प्रिय साथियों ,
                   पहले तो मैं आप सबका शुक्रगुजार हूँ कि मेरा ब्लॉग इतने दिनों तक विचार शून्य था किन्तु आप सबने मेरे प्रति अपने अगाध स्नेह को बनाये रखा और इससे जुड़े रहे I संभवतः मैं आप सबके इतने स्नेह का पात्र नही था तभी तो मैंने स्वयं को अब तक इससे वंचित रखा I  किन्तु एक बार फिर आपका स्नेहाकान्छी होकर उपस्थित हूँ और याचना करता हूँ कि मेरी इस भूल को तुच्छ   समझकर क्षमा  कर देंगे और अपने ह्रदय में पुनः मुझे स्थान देंगे I दरअसल कुछ बढ़ी हुयी जिम्मेदारियों और दायित्वों के बीच मैं  साहित्य प्रेम से न्याय नही कर पाया,  किन्तु मैं भलीभांति अवगत हूँ कि रचनाकार साहित्य जगत का आजीवन ऋणी होता है , उसे अपने साहित्य धर्म से विलग होने का अधिकार नहीं होता I अतः मैं पुनः अपने इसी धर्म के परिपालन के लिए उपस्थित हूँ , किन्तु यह आप सबके प्रेम और आशीर्वाद के बिना संभव नही होगा I            
                                                                                                                                                                               
                                                                  आपका स्नेहाकांक्षी I                                                                                                       



ग़म -ए-फ़िराक़ में जो मुझको तर-बतर कर दे 
मेरे मौला मुझे वो इश्क़ तू नज़र कर दे  

कोई फ़रेबी शमाँ फिर न मुझे पिघलाए 
मेरे वजूद को तू मोम का पत्थर कर दे   

मेरा गुमनामियों का शौक़ बना रहने दे  
ये शोहरतों का नशा ,मुझपे बेअसर कर दे  

मिली मंज़िल  तो पाया इसमे कोई प्यास नही  
मेरे मौला मुझे तू फिर से इक सफ़र कर दे  

तेरे हक़ूक में तारीकी अता हो  ' सागर '  
किसी ग़रीब की शामों को तू सहर कर दे